राष्ट्रीय डाक दिवस पर भारतीय डाक की ऐतिहासिक भूमिका का सम्मान करते हुए,
हमने चुना “चिट्ठी आई है” को अपने RhymeShots के लिए।
कविताओं की इस माला में, शब्दों ने यादों और भावनाओं को जीवंत किया।
इन शानदार रचनाओं को पढ़ें और शब्दों की इस खूबसूरत यात्रा का हिस्सा बनें।
अब दरवाजे पर खाकी कपड़े
और कंधे में झोला लटकाए,
साइकिल की घंटी बजाते
नहीं कहता कोई, “चिट्ठी आई है।”
अब नहीं विरह की अग्नि में
झुलसती हुई सजनी,
टकटकी बांध द्वार की ओर तकती,
नहीं उसके कान बाट जोहते
“चिट्ठी आई है” आवाज की।
चिट्ठी के पन्नों पर जो हाल
बयान होते रहे,
मानो भावनाओं की स्याही
से अंकित होते थे।
काश, “चिट्ठी आई है”
की वह आवाज फिर कानों में रस घोलती,
और चिट्ठी पढ़कर सुकून मिलता।
चिट्ठी संभाल कर रखती,
और उनके जज्बात दिलों
को स्नेह सिंचित करते।
– रूचिका राय
मन की भावनाएं शब्दों में सिमटकर कागज़ों पर उतर जाती थीं,
एहसासों के साथ रिश्तों की खुशबू भी उसमें से आती थी।
शुभ संदेश हो या निमंत्रण,
कुशल-क्षेम हो या समाचार,
कहते थे उसे चिट्ठी,
छिपा होता था जिसमें प्यार।
आसमानी, पीले, सफेद, गुलाबी कागज़ों का
अपना ही एक दौर था,
हुजूम उमंगों का दिलों में
था उमड़ता।
अपनों के लिए वक्त भरपूर था,
ज्यों ही डाकिया आस-पास
नज़र आता था,
मन पतंग सा उड़कर
खुशी से फूला नहीं समाता था।
दिलों के बीच नहीं थी जब दूरी,
अक्सर मिलना लगता था जरूरी।
नहीं था आसान शहरों के बीच
तय करना दूरी,
पंख लगाकर चिट्ठी करती थी
वो तमन्ना पूरी।
– पारुल कंचन
लंबी प्रतीक्षा के बाद,
तेरी चिट्ठी आई।
तूने लिखने में जितनी देर लगाई,
मेरी आस ने उतनी प्रीत बढ़ाई।
नहीं जानती, तूने मुझे कितना याद किया!
चिट्ठी में क्या उतना ही लिखा?
अकेले में खोल, उर में हिलोर उठी।
उंगलियां कांपी, जैसे हवा में पत्तियां हिली।
हाँ, पर मैंने हर अक्षर बार-बार पढ़ा।
हर भाव आंखों से बूँद-बूँद झरा।
तूने जो हर शब्द में प्यार का मोती जड़ा,
जाकर मेरे हृदय में वो गढ़ा।
बिना तेरी आवाज़ के, हर शब्द गूंजता रहा,
दूर कहीं जैसे घंट बजता रहा।
जैसे-जैसे पन्ने पलटती रही,
मंदिर में जैसे दीप की लौ थरथराती रही।
– मीनाक्षी जैन