कभी धुंध की चादर, कभी खिली हुई धूप,
इसी सुख-दुख के मिश्रण से बना है जीवन का रूप।
धुंध में भी रास्तों को ढूंढ़ना है ज़िंदगी का सार,
तभी ला पाएंगे हम अपने जीवन में बहार।
– लालिता वैतीश्वरण
ये जो धुंध सी छाने लगी,
सुबह भी अब धुंधली नज़र आने लगी।
एक-एक कदम बढ़ाऊं तो छंटती जाती है,
ज़िंदगी की हर शय अब साफ़ नज़र आती है।
– मीनाक्षी जैन
धुंध की घनी चादर,
कर देती है अस्पष्ट नजरों को,
या फिर कर देती है
हमारे नजरों से ओझल
कुछ अस्पष्ट नज़ारों को।
जो भी हो, सूर्य की तपिश
दूर कर देती है हर अस्पष्टता को।
जैसे जीवन की तपिश
दूर कर हर अस्पष्टता को
मिला देती है जीवन के कठिन हालातों से।
– रूचिका राय
धुंध सी जम गई है
रिश्तों में इस कदर,
दिल के आईने में भी कोई
अपने सा नहीं दिखता,
ये हैं कलियुग के रिश्ते,
ना कोई अपना है और ना कोई अपनापन।
– सरिता चावला
मौसम हो रही है फिर से सुहाना
धूंथला सा धूंध में ढूंढ रहे हैं सपना
धूप-छांव के खेल में कौन है अपना?
बस जिंदगी के राहों में चलते जाना..
– संध्या रानी दाश
झीना सा आवरण धुंध का, धरती पे छाया है,
जैसे मनभावन दुल्हन को घूँघट में छुपाया है,
धूप के खिलते ही, खिल जाएँगे सब नज़ारे,
रंग घुल जाएँगे, धरती और आकाश पर प्यारे प्यारे।
– सरिता खुल्लर
नवंबर महीने में शीत ऋतु ने कर दिया है आगाज़,
मीठी-मीठी चल रही है ठंडी-ठंडी बयार,
सुबह मौसम में धुंध दिखाई पड़ने लगी है,
ऊनी कपड़े और गर्म पकौड़े खाने को हो जाएं तैयार।
– कांता कंकरिया
नवम्बर का ये धुंध इतना सारा,
है फ़िज़ा में अलग ही नज़ारा,
सफ़र को रहस्यमय बना रहा,
क्या करे कोई मुसाफ़िर बेचारा,
वाहनों की गति धीमी कर रहा,
मंज़िल कितनी दूर है, नहीं पता,
लौट रहा दिन भर का थका हारा।
– अजित कर्ण
धुंध है छाई घनी-सी, हर दिशा हर छोर है।रात लंबी सी लगे है, दूर क्यों यह भोर है।
खोल बेटी हूँ पुरानी, मैं पिटारी याद की।
थाम ले मन बावरे को, ढूँढती वह डोर है।
– शशि लाहोटी
अधखिला ख्वाब उनींदी आँखों में,
ऊंघती हुई सुबह धुंध के आगोश में ।
तुम्हारे आने की आहट जाड़े की आफताब सा,
जैसे गुलाबी धूप उतर आया हो आँगन में।।
– अम्बिका मल्लिक
आहट है बदलाव की
विशेषता प्रकृति के स्वभाव की
मन में छिपे कौतुहल की
ओठ में छिपे अलगाव की
ना विकल्प ना चुनाव की
तर्क वितर्क से परे
‘धुंध’ कड़ी
अपेक्षा एवं यथार्थ के जुड़ाव की
– पारुल कंचन