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मेरा अस्तित्व मेरा गुरूर #InternationalWomensDay

रूचिका राय

आज जब की समय के साथ ही साथ सोच ,जीने का तरीका,रहन सहन का तरीका सब कुछ बदल रहा है, यह स्वावभाविक है कि नारी का स्वयं के प्रति नज़रिया और नारी के प्रति समाज का नज़रिया सब कुछ बदल रहा है। और यह बदलाव स्वावभाविक भी है,इसे सहर्ष हमें स्वीकारना भी चाहिए।और उसके अनुसार ही हमें स्वयं के प्रति अपने अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित करना चाहिए।

पुराने समय में स्त्रियों की जिम्मेदारी घर तक ही सीमित थी वह घर के अंदर परिवार और बच्चे की देखभाल करती थी और उन्हें बेहतर तरीके से जीवन जीने के साधन उपलब्ध कराने में ही स्वयं खुश महसूस करती थी।इसके साथ ही साथ बच्चे के लालन पालन में वह अपना सारा ध्यान,समय और ऊर्जा लगाने को ही अपने जीवन का मूल उद्देश्य मानती थी।

परंतु आज की नारी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है । घर बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए हर जगह अपनी विशेष पहचान बना रही है।

लेकिन यह शाश्वत सत्य है कि प्रकृति ने ही पुरुष और स्त्री को अलग अलग बनाकर भेजा है।पुरूष जहाँ शारीरिक रूप से बलवान हैं तो स्त्रियां मानसिक और भावनात्मक रूप से । प्रकृति के इस अंतर को समझना होगा और अपने अस्तित्व को लेकर अपने अंदर गुरूर होना चाहिए की ईश्वर ने हमें सह्रदय बनाकर भेजा है।

यह हमारी पहचान है,हमारा सम्बल है और हमारा आधार है।

आज जब स्त्रियों के अपने अस्तित्व के पहचान की लड़ाई चल रही उन्हें ये समझना होगा कि अपनी अस्तित्व को अपना गुरूर मानकर उसके विकास के लिए संघर्षरत होना।उसको परिष्कृत करना है न कि किसी से तुलना कर उसके जैसा बनने की कोशिश करना है।

हमें कभी भी यह नही सोचना है कि हम किसी से बेहतर नही बल्कि स्वयं को बेहतर करें । हमारा अस्तित्व किसी दया का पात्र नही बल्कि हमारे लिए स्वाभिमान का पात्र है , इसके लिए स्वयं को असहाय और कमजोर न मानें।

तभी हम अपनी मजबूती से पहचान बना सकेंगे ।

लेखिका का परिचय

रुचिका राय जवाहर नवोदय विद्यालय सिवान बिहार की पूर्व छात्रा है इन्होंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई जवाहर नवोदय विद्यालय सिवान बिहार से की है। उसके बाद अपना स्नातकोत्तर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से किया है।अभी यह शिक्षिका के पद पर मध्य विद्यालय गुठनी बिहार में कार्यरत हैं। पिछले कई वर्षों में कविताएं ,कहानियां ,किताबें प्रकाशित की हैं।

इनका एक लोकप्रिय फेसबुक ब्लॉक भी है,जिसमें 4000 से अधिक फॉलोअर्स हैं। इनका एकल काव्य संग्रह “स्व पीड़ा से स्वप्रेम तक” तथा कई साझा संग्रह “अभिनव अभिव्यक्ति ए बॉन्ड ऑफ नवोदयन”, “इबादत की तामीर सफर से शिखर तक”, अभिनव हस्ताक्षर, दुर्गा भावांजलि इनकी प्रमुख पुस्तक है।

मेरी लेखन का मूल, ” जिसने जिया नही उस’ने जाना नही”

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