लेखिका: प्रेम बजाज
दोस्तों के साथ बिताया तो इक पल भी याद रहता है। दोस्तों की याद को ना कोई दिल से भुला ही पाता है। शादी हो गई सब दोस्तो की, सब हो गए दूर-दूर। सब को इक -दूजे की याद सताई, इक-दूजे से मिलने की गुहार लगाई। जल्दी से फिर सबको फोन लगाया , सबने फिर इक प्लान बनाया। मिल के सब फिर वो पहुँचे पुराने स्कूल, जिस चपरासी को तँग थे करते, बात- बात पे उसको परेशान थे करते उसको जा के गले लगाया , कुछ थोड़ा सा प्यार जताया। जिस के बाग से तोड़ के आम खाते थे हम चोरी-चोरी, उस माली काका से जा के होली के दिन होली खेली । कॉलेज की याद आयी फिर हम सब यारों को, जा कर के उस कैंटीन वाले से चाय समोसे खाए थे । घूमघाम के फिर यारों संग मस्ती में दिन वो बिताए थे याद आ गया यारों को फिर वो रामलाल रिक्शा वाला, स्कूल छोड़ने हमको वो जाता था, कभी-कभी तो लाड मे आकर कँधे पे उसके चढ़ जाया जाता था सोचा उसके घर जाने को, जाकर के मिल आने को । जैसे ही उसकी गली में पहुँचे , काकी रामलाल की बीवी , माथा पीटती रोती जाती। मृत्यु शैया पे पडा़ रामलाल। बेटा ना कोई ,तीन बेटियाँ, दाग़ कौन लगाएगा । यारों ने फिर जोश दिखाया ,काँधा देकर रामलाल को, सबने अपना फर्ज हमने निभाया , काँधे चढ़ते थे जिसके, काँधा दे उसको वो कर्ज़ चुकाया, फिर यारों का मेला घर को आया। इस तरह हमने यारों संग वो यादों भरा दिन वर्षों बाद एक साथ बिताया।