इस बार के #Rhymeshots के लिए विषय था “परिवर्तन”, जिसने हमारे लेखकों को बदलाव के अलग-अलग पहलुओं पर सोचने और लिखने के लिए प्रेरित किया।
उनकी कविताओं ने जीवन में आने वाले बदलावों, उनके संघर्षों और उनसे मिलने वाले नए अनुभवों को बखूबी उजागर किया।
हमारे विजेताओं ने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह दिखाया कि कैसे परिवर्तन जीवन का अभिन्न हिस्सा है और हर मोड़ पर कुछ नया सिखाता है। आइए, इन रचनाओं के जरिए बदलाव के इन खूबसूरत पहलुओं को महसूस करें।
चीर तिमिर को जब मयंक ने
दामन को अपने फैलाया,
हुई प्रज्वलित सभी दिशाएँ
तारामंडल ने नभ को सजाया ।
ओस की बूँदों ने जब आकर
मोती थाल से भू को सजाया,
स्नेहसिक्त हो क्षितिज ने फिर तो
धरती अंबर का मिलन कराया ।
मिली सूचना जब रवि को तम की
उसने अपना रथ मँगवाया,
अरुणिमा को भेज व्योम को
रंग सिंदूरी से सजवाया |
रक्तिमा चहुँ ओर हो गई
जब रवि ने अपना रूप दिखाया,
अंधकार को दूर भगाने
मानो दिवस ने उसे बुलाया |
परिवर्तन है नियम ईश का
प्रकृति ने सबको यह समझाया,
दिवस के बाद निशा आती है
रवि मयंक ने बोध कराया |
– रूचि असीजा “रत्ना “
बदल जाते हैं बसने वाले
बदलती नहीं बस्तियां
बदलते रहते हैं मुसाफिर
लेकिन बदलतीं नहीं कशतियां
इंसान से ज्यादा टिकता यहां मकान और सामान है
कोई समझे या ना समझे
परिवर्तन प्रकृति का विधान है
बदलते परिवेश का क्या खूब मिला परिणाम है
बंट गई दिशायें बंट गई धरा
बंट गया ये नीला आसमान है
इंसानियत से ऊपर उठ गए मजहब
मिल गए जिन्हें कुछ नाम है
एक ही परिभाषा जी रहे
बाइबिल गीता कुरान है
हो गया क्षीण बोध भीतर का
आत्मसम्मान की जगह लेने लगा अभिमान है
अज्ञानता से आच्छादित अनुभवहीन सारथी कर रहा जीवन का अनुसंधान है
– पारुल कंचन
बदलने का एक निच्छक अभिव्यक्ति
समय को जीवंत साबित करने के लिए
एक निरवच्छिन्न प्रयास
कभी ज्वार से एक किनारे से
दूसरे किनारे तक विस्थापन
या फिर प्रलयकारी बाढ़ में
अपने मिट्टी से निर्वासन..
अवचेतन से चेतना के सूक्ष्म विकास
चंडाशोक से धर्माशोक
या फिर पाशविक प्रवृत्ति में माताल
क्षमतासीन होकर शोषण की जयगान..
गोधूलि के दूर दिगंत के पलकों के नीचे
जम्हाई लेता हुआ निरीह जीवन
सन्निकट दिग्वलय में स्वर्णाभ सूर्योदय
स्नेहाल्हादित जीवन के मदभरा योवन..
‘मरा’से ‘राम’.
दानवत्व से देवत्व का परिमार्जन
सीमित है बस कैलेंडर के पृष्ठ उन्मोचन
दिसंबर के बाद नव वर्ष का उच्चाट अभिनंदन..
– संध्या रानी दाश
वृद्धाश्रम की नींव में, लुप्त हुए संस्कार।
कौन दिशा में जा रही, परिवर्तन की धार।
समय बदल कैसा रहा, बच्चों का व्यवहार।
गोदी में जिसके पले, वही लगे अब भार।
परिभाषा अब नव हुई, कौन बड़ा गुणवान।
रखता जो धन सम्पदा, जगत करें सम्मान।
होता सदैव दुःख नहीं, सुख भी आता पास।
तिमिर घना हो रात में, होती सुबह उजास।
बचपन यौवन से जरा, होता नित बदलाव।
सभी पढ़ाते पाठ हैं, सबका अपना भाव।
– शशि लाहोटी
जग में आया बीज बनकर उसने वृक्ष का रूप धरा
गया सूख कर बिखेर पत्तियां जो था कभी हरा हरा
नदियां बहते बहते ,कल-कल जाकर मिली जलधि में,
साधारण से एक सीप की आकृति बदली मोती में!
छोटा सा झांजा बना रंग बिरंगी तितली रूपांतर से,
हर वस्तु का बदलाव निश्चित है युग युगान्तर से!
जो इस जग में आता है ,वो शरीर त्याग कर जाता है,
सबसे जटिल परिवर्तन यही है जो एक शून्य हृदय में लाता है!
जीवन का नियम यही है इसी धारा में बहना है,
परिवर्तन से हुए मनो विकार को धीरज धरकर सहना है!
– ललिता वैतीश्वरन