कभी अतीत के कुछ क्षणों में दिल में होने लगती है सुमधुर मूर्च्छना,
कभी आंखें नम हो जाती हैं और शब्दों को नहीं मिलता कोई ठिकाना।
ऐसी होती है स्मृतियों का अनमोल खज़ाना।
कभी अपने बचपन की महक से भर जाता है मन,
कभी मासूमियत से हम संजोते हैं अपना घर-आंगन।
ऐसे होते हैं स्मृतियों के अद्भुत और गहन रंग।
कभी प्रचंड रौद्र तो कभी घोर अंधेरा,
कभी लगता है बसंत बहार, तो कभी महसूस होती है शीतल सुरीली छाया।
ऐसी होती है स्मृतियों का अनोखा साया।
यादें सुखद हों या फिर दुखद,
बातें कड़वी हों या मीठी,
फिर भी स्मृति-पटल से नहीं हटती
इनकी परिप्रेक्ष्य और अनुभूति।
– सुधा रानी पति
गर्मी की छुट्टी, वो बाबा का घर,
हमारी छुक-छुक गाड़ी का प्यारा सफ़र।
खिड़की से चेहरा न निकालने की हिदायत,
खिड़की से झाँकने पर आँख में कोयला जाने का डर।
गाड़ी के साथ चलते नदी और पेड़,
दौड़ते हमारे साथ खेत और रेल।
भूख लगते ही आलू-पूरी की कहानी,
प्यास लगने पर ठंडा सुराही का पानी।
घर पहुँचते ही अम्मा-बाबा का दुलार,
कच्ची छत पर धूप जाने का इंतज़ार।
पानी छिड़कने पर सोंधी-सी ख़ुशबू,
बिछौनों के बिछते ही शुरू होती गुफ़्तगू।
सुबह होते ही बाबा संग सैर पे जाना,
लौटते में नदी से खरबूज़-तरबूज़ लाना।
वापसी में ढेर सारा प्यार भर लाते थे,
आँखों में आँसू और सबका प्यार पाते थे।
तारों भरा आकाश छत पे छोड़ आते,
बाबा-अम्मा का प्यार साथ बाँध लाते।
– मीनाक्षी जैन
स्मृतियाँ, टुकड़े-टुकड़े में बिखरी,
जीवन की यात्रा में छुपी हुई।
कुछ पल खुशी, कुछ पल दर्द,
हर एक स्मृति में एक कहानी हुई।
वे दिन, वे पल, वे यादें,
जो कभी नहीं भूलतीं।
स्मृतियों की धूल में,
जीवन की सच्चाइयाँ छुपी हैं।
स्मृतियाँ, जो हमें रुलाती हैं,
और जो हमें मुस्कुराती हैं।
वे हमारे अतीत की धरोहर हैं,
और भविष्य के सपनों की प्रेरणा।
– मृणालिनी सौरव कक्कड़
कॉलेज के दिन वो सुहाने, फिर स्मृत हो आए,
स्मृतियों के परिंदों ने आज जब पंख अपने फड़फड़ाए।
एक साथ जब मित्र मंडली छुट्टी मारा करते,
अच्छी फ़िल्म देखने को सिनेमाघर में मिलते।
न कोई चिंता, न कोई फ़िक्र, न ही ज़िम्मेदारी,
अब कंधों पर आन पड़ा है, बोझ ये कितना भारी।
छीन-झपटकर लंच थे करते, रोज़ समोसे खाते,
नहीं तैलीय अब खाते, बच्चों को समझाते।
पिकनिक जाते, मस्ती करते, नहीं विस्मृत है होता,
हुए रोमांचित, याद आया जब नैनी झील का गोता।
घंटों-घंटों बातें करते थे, कभी नहीं थे थकते,
नहीं अब भाता अधिक बोलना, मूक बने हैं रहते।
स्मृति-पटल पर अंकित हैं आज भी कुछ शिक्षकों के नाम,
जिनकी अमृत-मंडित बातें, आती बहुत हैं काम।
काश कोई लौटा दे फिर से, वो दिन कॉलेज वाले,
वो चंचलता, वो नादानी, अमल ह्रदय मतवाले।
– रुचि असीजा “रत्ना “
जीवन के हर लम्हों को समेटती,
कभी दर्द की गहरी दास्तां,
कभी खुशियों की मीठी कहानी।
मन के गहरे कोने में जा छुपती,
और गाहे-बगाहे,
स्मृतियों का साँकल खटखटाती।
वही स्मृति,
कभी होठों पर मुस्कान लाती,
तो कभी नयनों से सावन-भादों बरसाती।
जीवन जीने की वजह बन,
जिंदगी से दो-चार करवाती।
भूले-बिसरे लम्हों को
जिंदगी से मिलवाती।
स्मृति के कड़वे अनुभव,
जिंदगी को एक नया पाठ पढ़ाते।
स्मृति के मीठे पल,
जीवन को प्रेरणा दे जाते।
विश्वास की पगडंडियों पर चलते मन को,
मजबूती का एहसास दिलाते।
– रूचिका राय
एक हवा का झोंका,
मुट्ठीभर सुगंध,
दो बूंद आँसू,
अंजुलीभर फूल,
एक मुट्ठी अनुभव,
रत्ती भर दर्द और
भीगे हुए दो नयन।
भीगा हुआ मन के
नीरव अभिव्यक्ति…
कभी महकती हुई पारिजात,
कभी कैक्टस की दर्दभरी चुभन,
तो कभी मलय पवन,
और कभी
महावात्या का अचानक कंपन।
खुशियाँ आती हैं कभी
छप्पर फाड़कर,
आनंद का मेला
लग जाता है ज़माना भर।
अचानक फिर कभी बन जाती है
दुःख-दर्द का विशाल हिमालय।
कभी मृत्यु-तुल्य यातना,
तो कभी बन जाती है संजीवनी।
मरु में चलता कभी,
दिखाता है कितनी ही
माया मरीचिका।
गढ़ती है फिर
स्वप्निल प्रासाद,
कुछ ही क्षण में…
– संध्या रानी दाश