लेखिका: रुचिका राय
कहते हैं हाथों की लकीरें में हमारी तकदीर छिपी होती है । इसमें कोई कर्म की रेखा है,कोई आयु की,कोई भाग्य की,कोई खुशी की ,कोई दर्द की।
इन लकीरों में उलझकर जब हम प्रयास करना छोड़ देते हैं तो किस्मत हमारा साथ देना छोड़ देती है।कभी पढा था जो बोओगे वही काटोगे।तो क्यों न अपनी हाथों की लकीरों को हम स्वयं लिखें।
माना कि कुछ फैसले भाग्य या ईश्वर के हाथ में होते पर उसके प्रति हमारा नजरिया तो बदले।हँसते मुस्कुराते जिंदगी को जियें ,दर्द का सामना करें और जीवन समर को पार करें।
इन हाथों की लकीरों में छिपी अनेकों कहानियाँ हैं
कभी खुशियाँ ,कभी गम जीवन में आनी जानी है।
संघर्षो के बचकर जायेंगे कहाँ ये तो बताओ जरा,
संघर्षों का सामना करना जीवन की रवानियाँ हैं ।
अपनी लकीरों को हम कुछ इस प्रकार लिखेंगे,
तकदीर भी सोचेगी आखिर किसकी मेहरबानी है।
जहर जिंदगी का पीकर और निखरेंगे हम तो,
लोग सोचेंगे ये देखो कैसी पागल और दीवानी है।
हाथों की लकीरों के भरोसे आखिर कब तक रहे,
चलो एक लकीर खुद बनाकर सबको दिखानी है।