अंधियारे को दूर भगाते
जगमग दीप जले,
डिगना नहीं,डटे ही रहना
जब तक रात ढले ।
गणेश जी दें विवेक,
लक्ष्मी जी धन बरसाएँ ।
राग द्वेष को दूर करें,
खुशियाँ जीवन में आएँ ।
स़ुख ,सम्पत्ति ,वैभव मिले,
स्वास्थ्य मिले और ज्ञान ।
मन मे ज्ञान का दीप जले,
मिटे अज्ञान, अभिमान ।
ज्ञान के इस दीप से ,
घर घर हो दीवाली ।
खुशियों की सौगात लेकर,
हर साल आए दीवाली ।
न डर राह अमावस के अँधेरों से ,
दीपावली का दीप जलाता चल।
नफरतों के जंगल में ,
प्रेम की गँगा बहाता चल।
– समिधा नवीन वर्मा
ज़ब दूर देश से अपना कोई, लौटकर आता है घर।
उस दिन होती सच्ची दिवाली, जगमग हो जाता है घर।
जब परिवार में उठती गूँज, हँसी के ठहाकों की।
धीमी पड़ जाती है तब, आवाज तेज पटाखों की।
जहाँ बड़ों का मान-सम्मान और बोली मीठी होती है ।
लड्डू, बर्फ़ी से भी मीठी, वो मिठाई दिवाली की होती है।
जहाँ बच्चों की चंचलता से, आँखों में चमक आ जाती है।
फुलझड़ी से भी बढ़कर वो चमक सब और छा जाती है।
जहाँ आसमान-सा ऊँचा, सपना देखा जाता है।
दिवाली का रॉकेट भी, वहाँ नहीं पहुँच पाता है।
जो सोच,अंधियारे से उजाले की ओर ले जाती है।
सही मायने में वही दिवाली, दिवाली सी होती है।
– शशि लाहोटी
दीपावली की दीपों के संग दमक
खुशियों से खिले चेहरे की चमक,
परिवार के संग जब हो मुस्कुराहट,
लगती है जैसे खुशियों की आहट।
प्यार और परवाह की हो रोशनी,
लगती नही है फिर जीवन में कमी,
पीढ़ियों का अंतर भी न बढ़ाए दूरी
आपसी प्यार की हो फिर नमी।
आतिशबाजियों की जरूरी नही शोर,
हँसी की खनक सुने हम चारों ओर,
त्योहारों की सुन्दरता बढ़ जाती है
बंधे सब जज्बातों के एक ही डोर।
दीपावली सब मिलजुलकर मनाएं,
मुस्कान होठों पर रख खिलखिलाए
रोशनी हो मन के भीतर और बाहर,
दीप जीवन मे खूब जगमगाए।
– रूचिका राय