“तेरी बोलती निगाहें…
कभी बयां कर देती हैं दिल के गहरे राज,
तो कभी पूछ लेती हैं सौ सवाल।
कभी बिना आवाज़ के ही उतर जाती हैं दिल में,
तो कभी नदियां सी बहा ले जाती हैं मुझे साथ!”
कभी-कभी ज़ोर से धड़कता दिल अचानक रुक जाता है!
कभी किसी को देखकर, तो कभी किसी आवाज़ पर!!
तो कहो, अपनी दिलकश आवाज़ से लोगों की धड़कनें रोक देना कैसा लगता है तुम्हें?
मज़ा आता होगा ना, जब तुम्हारी आवाज़ सुनकर लोग सब कुछ भूल जाते हैं, खो जाते हैं तुममें ही!
वो समंदर की ख़ामोशी से भी गहरी मीठी बातें, जो तुम कहकर भूल जाते हो…
पर कभी सोचा है कि वो बातें किसी के दिल में बरसों-बरस के लिए छप जाती हैं…
कभी ना मिटने के लिए…!
बड़ा अच्छा लगता होगा किसी को एकटक अपनी गहरी आँखों से देखना,
और उस एक नज़र से किसी का रोम-रोम महका देना…!
कभी सोचा है कि तुम्हारी वो नज़रें किसी के ज़ेहन में अंदर तक उतर जाती हैं,
और फिर ना सोने देती हैं, ना जागने…
कैसा लगता है किसी की नींदें उड़ाकर खुद चैन से सोना??
“तेरी बोलती निगाहें…
कभी रोक लेती हैं मुझे दूर जाने से,
तो कभी समेट लेती हैं मेरे बिखरते मन को।
कभी शिकायतें करती हैं हज़ार,
तो कभी बस एकटक निहारती हैं मुझे!”
लय-ताल के साथ उतरते-चढ़ते वो गीत,
जो अक्सर यूँ ही गुनगुना देते हो…
तुम्हें पता भी है कि वो शब्द किसी की साँस… किसी की धड़कन की लय बदल देते हैं!
कभी फुर्सत में बैठकर सोचना कि क्यों हर मुलाकात पर मेरी नज़रें झुकी रहती हैं…
और तुम्हारी मुझ पर!
क्योंकि मुझे छुपाना होता है अपनी बेकाबू साँसें….
मेरे अंदर झाँकती तुम्हारी आँखें,
जो पढ़ लेती हैं मेरा अंतर्मन भी…
सिहर जाती हूँ उस पल में…
कि पता नहीं अगले पल तुम क्या कर जाओगे,
और मैं बस खुद को, अपनी धड़कनों को संभालती रह जाऊँगी।
तुम्हारी आँखों से झलकती तुम्हारी बेक़रारी,
जितनी बार देखूँ, बढ़ती ही जाती है!
और तुम्हें तो मज़ा आता होगा ना,
मुझे इस तरह सताने में!
“तेरी बोलती निगाहें…
कभी चूम लेती हैं बेवजह ही,
तो कभी नाराज़ हो जाती हैं ज़रा-सी बात पर।
कभी बहका देती हैं मुझे मेरे ख्यालों से,
तो कभी संभाल लेती हैं मुझे बहकने से।”
जो इतना कुछ बिना कहे ही कह चुके हो,
तो ये भी बताना…
क्या पढ़ पाते हो मेरी आँखें?
देख पाते हो मेरे होठों का कंपन?
समझ लेते हो मेरे दुपट्टे में घूमती उँगलियों की बेक़रारी?
क्या सुन पाते हो मेरी धड़कनों का शोर?
क्या एहसास होता है मेरी बहकी हुई साँसों का?
अगर हाँ…
तो कभी नज़रों की जगह शब्दों को देना,
और बताना मुझे कि मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए…
क्योंकि कभी-कभी प्यार का इज़हार अच्छा लगता है!
अच्छा लगता है सुनना कि हम कितने ख़ास हैं किसी के लिए!
सुकून मिल जाता है सुनकर कि कोई है जो हमें ख़ुद से भी ज़्यादा चाहता है!
बाकी… तुम्हारी ‘बोलती निगाहें’ तो हैं ही…
बिना कहे सब कुछ कह देने के लिए…
– डॉ. पूजा गुप्ता प्रीत
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चित्र सौजन्य: Thirdman via pexels
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लेखक परिचय:
डॉ. पूजा गुप्ता प्रीत, मुंबई की निवासी, एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं—सॉफ्टवेयर इंजीनियर, लेखिका और ज्योतिषी। हिंदी कहानियों की प्रमुख वेबसाइट पर उनके 14 लाख से अधिक पाठक और 6100+ फॉलोअर्स हैं। अब तक, वे 500 से अधिक कहानियाँ, कविताएँ और स्क्रिप्ट लिख चुकी हैं।
एक सफल लेखिका के रूप में, उनकी नौ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, और वे पिछले तीन वर्षों से विभिन्न साहित्यिक समूहों से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें ज़ी और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा टॉप 100 वुमन अवार्ड के लिए नामांकित किया गया है।