नवरात्रि केवल रंगों और उत्सव का पर्व नहीं, बल्कि हमारे भीतर की देवी शक्ति को जगाने का समय है।
Day 1 पर हमने “सशक्त” शीर्षक दिया था, और यहाँ प्रस्तुत हैं हमारे लेखकों द्वारा लिखी गई कुछ चुनिंदा कहानियाँ और कविताएँ।
1.
पग-पग बिखरे शोलों में भी, बढ़ सशक्त वह जाती है।
माथे पर बोझ लिए भारी, ये शक्ति कहाँ से लाती है।
जीवन की आहुति देने में, इक पल भी न विचार करे।
त्याग समर्पण की मूरत ये, दया भाव विस्तार धरे।
होले होले जलती जाती, दीपक की बन बाती है।
पग-पग शोले बिखरे है, पर कदम बढ़ाए जाती है।
प्रीत करे बन राधा-सी ये, द्रुपदसुता-सी प्रण धरती।
ज्ञान अपाला गार्गी-सा है, नेह यशोदा-सी रखती।
दृढ़ संकल्पी सावित्री-सी, यम से भी लड़ जाती है।
पग-पग शोले बिखरे है, पर कदम बढ़ाए जाती है।
— शशि लाहोटी
2.
सशक्त है हर व्यक्ती, जो खुद को पहचानता है,
आत्मनिर्भरता की परछाई सबके सामने तानता है।
डरता नहीं किसी भी तूफान से,
आज भी सिर उठाकर जीता है सम्मान से।
हिम्मत को बनाकर अपनी ढाल,
साहस से दिखाते हैं अद्भुत कमाल।
नारी हो या कोई इंसान,
अपने सपनों की भरो उड़ान।
चमको उन सितारों की तरह,
जो सबको मिसाल देते हैं,
सशक्त बनकर गगन में,
ताल से ताल मिलाते हैं।
हर ठोकर हमें सिखाती है,
नई राह दर्शाती है।
कल जो था वह बीत गया,
हम नया आज बनाएंगे।
सशक्त बनकर, चारों तरफ,
नए रंग और नई खुशबू फैलाएंगे।
— दीपिका कपूर
3.
तीन बहनों में शिखा सबसे छोटी थी। छोटे से शहर में अपने माता-पिता के साथ रहती थी और पढ़ाई करती थी।
वह जानती थी कि उसका भी वही हश्र होगा जो उसकी दोनों बहनों के साथ हुआ था—किसी तरह शिक्षा दिलाकर ब्याह दिया जाएगा।
पर उसने अपना हौसला बनाए रखा। लक्ष्य पर अडिग रही, परिस्थितियों से कभी हार नहीं मानी। बाधाओं को चीरते हुए आगे निकलती गई।
बारहवीं कक्षा में 85% अंक प्राप्त करने के पश्चात, उसने कंप्यूटर साइंस में बी.टेक. की डिग्री हासिल की और आज वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी सैलरी पैकेज पर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत है।
शिखा माता रानी की असीम अनुकम्पा से सशक्त होकर जीवन की बुलंदियों को छूने की अभिलाषा रखती है।
— अजित कर्ण “असीम”
4.
“तुमसे नहीं हो पाएगा, तुम रहने दो। बहुत दूर है, तुम कैसे मैनेज करोगी?”
ये शब्द संवेदना तो दर्शाते थे, मगर उसके कानों में ऐसे गूंजे जैसे कोई गर्म शीशा पिघलाकर डाल दिया हो।
सहानुभूति के ये शब्द उसे नहीं चाहिए थे।
उसने स्वयं ही दृढ़ प्रतिज्ञा की—चाहे कुछ भी हो जाए, वह देवी दर्शन करके ही रहेगी।
और जब वह पहाड़ की ऊँची चोटी पर मंदिर परिसर में पहुँची, तो उसे महसूस हुआ कि स्वयं की शक्ति ही हमारे मनोबल को दृढ़ करती है और हमें सशक्त बनाती है।
तभी उसके इरादे और मजबूत हो गए।
— रूचिका राय
5.
संघर्ष, शक्ति, कर्म और त्याग से बना
सशक्त शब्द हर रूप में हमें प्रेरणा देता है।
संघर्षों से खेलकर ही तो शक्ति आती है,
शक्ति बढ़ती है तो मनोबल अपने आप ही बढ़ जाता है।
बुद्धि और विवेक सही राह दिखाकर नेक कर्म
करने का दृढ़ संकल्प करा देते हैं।
सत्य की राह अपनाने वाले त्याग
और समर्पण में पीछे नहीं हटते।
आत्मविश्वास आत्मबल बनकर अंतर्मन
का मार्गदर्शन कराता है।
बारंबार गिरकर उठना, और उठकर संभलना—
यही तो अपने आप में सशक्त कहलाता है।
नर-नारी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
सशक्त हुए बिना जीवन, जीवन नहीं है।
— मनीषा मारु
यहाँ प्रस्तुत हर कविता और कहानी सशक्त होने की आवाज़ है—कभी संघर्ष से, कभी देवी की शक्ति से, तो कभी आत्म-खोज से।
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