नवरात्रि केवल रंग और उत्सव का समय नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की प्रकाशमान शक्ति और सकारात्मकता को पहचानने का अवसर है।
Day 3 पर हमने “उज्ज्वल” शीर्षक दिया था, और यहाँ प्रस्तुत हैं हमारे लेखकों द्वारा लिखी गई कुछ चुनिंदा कविताएँ और प्रेरणादायक रचनाएँ।
1.
सात सुरों के साज सजाकर, मेरे स्वरों में साजो।
हे हंसवाहिनी, सरस्वती माँ, मेरे कंठ में आन विराजो।
झंकृत कर दो वीणा के तार, खुल जाएँ मम हृदय द्वार।
ज्ञान ज्योति करो प्रकाशित, मिटा अज्ञानता का अंधकार।
मैं मानूँ सदा तेरा उपकार, मेरी वाणी पर साजो।
मन की अशांति को दूर करो, निर्मूल करो अहंकार मेरा।
उर कलुषता का नाश हो और चित्त हो उज्ज्वल मेरा।
विचरित हों ज्ञान प्रकाश में हम, मुझे कृपा दृष्टि से नवाजो।
— रुचि असीजा “रत्ना”
2.
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कितनों के लिए प्रेरणा है और जीने के लिए संबल है।
ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य का उज्ज्वल प्रकाश कितने जीवन में रोशनी भर देता है।
यह शब्द मात्र शब्द नहीं थे, उसके तपते जीवन में जल की कुछ बूंदें थे।
रोशनी से उसके पिता ने जब यह कहा था, वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई।
फिर जल्दी से आँसुओं को पोछकर ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगी।
उसने सोच लिया था कि अब कभी भी अपनी मुस्कान मद्धम नहीं पड़ने देगी, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों न आए।
— रूचिका राय
3.
अज्ञानता के अंधकार को मिटाने,
ज्ञान का एक दीपक जलाना चाहिए।
कोई भी इससे न रह जाये वंचित,
जीवन उनका भी उज्ज्वल होना चाहिए।
जिंदगी को दर्पण सा बनाने के लिए,
धूल आत्मा पर न जमनी चाहिए।
कोई बदली आके ढक ले न उजाला,
साफ़ अंधियारे को करना चाहिए।
संघर्षों से जूझोगे जीवन में जितना,
विश्वास भी बढ़ता रहेगा उतना।
सूझती हो न जब कोई मंज़िल,
नयी भोर का सूरज धरती पर लाना चाहिए।
— मीनाक्षी जैन
4.
जय-जय गौरी, जय माँ अम्बे।
दर्शन दे दो कर न विलम्बे।
बरसाओ माँ कृपा अपारा,
उज्ज्वल रूप लगे है न्यारा।
चौकी माँ की सजी विहङ्गम,
भक्ति शक्ति का अद्भुत सङ्गम।
धूम मची आये नवराते,
भक्त भाव में भजन सुनाते।
पान, पुष्प, नैवेद्य चढ़ाएँ,
हलवा पूरी भोग लगाएँ।
लाल चुनर माथे पर धारी,
करें आरती सब नर-नारी।
सङ्कट सारे माँ हर लेती,
मन इच्छा का वर है देती।
दीन दुखी का बनी सहारा,
भटके मन को दिया किनारा।
— शशि लाहोटी
5.
नारी, इस सृष्टि का आधार तू,
अंतर्मन की शक्ति से करती है सबका संहार तू।
तुझमें ही समाया दुर्गा का अंश है,
इसी आत्मविश्वास से उज्ज्वल हुए सबके वंश हैं।
खो रही है पहचान क्यों इस दिखावे भरे समाजों में,
जकड़कर रह गए क्यों इन झूठे रिवाजों में।
अपने गुणों से उज्ज्वल कर, जलाकर नकारात्मकता की ज्योत,
ममता के सागर से लिखो प्रेम का नया स्त्रोत।
आ गया है समय जागने का,
अपने अंदर की देवी को भांपने का,
तेरे भक्ति और शक्ति रूप को पहचान,
यही उज्ज्वल रूप है तेरा सबसे महान।
— दीपिका कपूर
यहाँ प्रस्तुत हर कविता और कहानी उज्ज्वल होने की आवाज़ है—ज्ञान, प्रेरणा और सकारात्मकता से भरी।
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