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नवरात्रि शॉट्स – “प्रेम” कविताएँ और प्रेरणादायक अभिव्यक्तियाँ

Navratri Writing Challenge

नवरात्रि शॉट्स की हमारी #NineDaysNineMuses यात्रा के आठवें दिन का विषय है “प्रेम”। प्रस्तुत हैं कविताएँ जो भक्ति, नारी की कोमलता, रिश्तों की पवित्रता और प्रेम के अद्भुत रंगों को व्यक्त करती हैं।

राधा-कृष्ण का प्रेम

राधाकृष्ण का प्रेम अलौकिक,
मिथ्या सब संसार।
प्रेम में इनके डूबकर,
सब हों भव से पार।

राधाकृष्ण के प्रेम का,
मधुबन बना गवाह।
प्रेम के वश हुईं गोपियाँ,
नहीं लोक परवाह।

गौर वर्ण की राधा प्यारी,
पर श्यामा कहलाती।
प्रीत के रंग में रंगने से ही,
प्रीति है बढ़ जाती।

रंग दे अपनी प्रीति में कान्हा,
मैं भी तेरी प्रेम दिवानी।
मेरी भव बाधा को हर लो,
सफल करो मेरी ज़िंदगानी।

— रुचि असीजा “रत्ना”


प्रेम का दीप

प्रेम वो अग्नि है, जो जलाए नहीं,
पर भीतर एक दीया जलाए वही।
न कोई चाहत, न कोई शर्त,
बस मन का समर्पण, भावों का अर्थ।

नयन मिले तो संसार ठहर जाए,
मौन में भी संवाद उतर जाए।
वो मुस्कान जैसे प्रभात की किरण,
जो मिटा दे हर मन का भ्रमण।

प्रेम वो सागर है, गहराई अपार,
जिसमें डूबे तो मिले आत्मा का सार।
ना शब्दों की ज़रूरत, ना बयान की दरकार,
प्रेम खुद में है जीवन का उपहार।

— अम्बिका मल्लिक ✍️


निर्मल प्रेम

प्रेम एक निर्मल सी नेह धारा है,
मन के भीतर अद्भुत उजियारा है।
प्रेम न शब्दों में, न बंधन में,
प्रेम बस एहसास के स्पंदन में।

प्रेम में दूर रहकर भी पास लगे,
हर पल उसका साथ लगे।
नयन ना बोल पायें जो बात,
जो बिन बोले समझे वही प्रेम।।

— डॉ. आभा माहेश्वरी


प्रेम डगर

प्रेम डगर पर चलने वाले,
मत घबराना चलते-चलते।
भटक न जाना राह प्रेम की,
प्रेम डगर ही पहुँचाएगी।

मंज़िल पर तुझको ये तेरी,
इसी राह पर हो जायेगा।
मिलना तेरा परमेश्वर से,
हो जायेगी पूरी तेरी।

आस, प्यास सब पूरी तेरी।

— मीनाक्षी जैन


प्रेम का स्वरूप

प्रेम है ईश्वर भक्ति का प्रभावी मार्ग,
जगाता जो प्रभु निष्ठा व सेवा भाव।

नि:स्वार्थ, निष्छल है इसका स्वरूप,
अलौकिक अहसास से है यह युक्त।

प्रेम में त्याग, समर्पण और परवाह,
तभी प्रेम में आता सुंदर सा सुवास।

प्रेम है हृदय का पावन अहसास,
इसमें सींचा हर रिश्ता है कुछ ख़ास।

— अजित कर्ण ‘असीम’


खुद से प्रेम

प्रेम जो चाहो समझना, प्रेम खुद से कीजिए।
छोड़ बातें दूसरों से, बात खुद से कीजिए।

भावनाओं का दहन कर, प्रेम हो सकता नहीं।
फल बिना ऋतु के कभी भी, पेड़ पर पकता नहीं।

स्वर्ण में चाहो चमक तो, आँच पूरी दीजिए।
प्रेम जो चाहो समझना, प्रेम खुद से कीजिए।

— शशि लाहोटी


यदि इन कविताओं ने आपके हृदय में प्रेम का दीप जलाया है, तो कृपया नीचे कमेंट में अपने विचार साझा करें।

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