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खामोशी में लिपटा इश्क

A woman reaches towards her own reflection, illuminated by a dramatic red light.

रमा जहाँ भी जाती, उसे लगता कोई उसके आस-पास है। शुरू-शुरू में तो वह डर जाती थी, मगर धीरे-धीरे वह अभ्यस्त हो गई। उसे लगता तो था कि कोई आस-पास है, मगर उसने आज तक उसे देखा नहीं था।
बस किसी के होने का एहसास होता था। कई बार उसे यह खुद का वहम लगता, या कई बार वह नज़रें इधर-उधर घुमाती — शायद कोई दिख जाए। मगर उसे कोई नहीं दिखता था।
और फिर वह इसे अपना वहम मानकर भूलने भी लगी थी।

एक दिन कॉलेज से लौटने में देर हो गई। मौसम भी काफी खराब हो गया था — लग रहा था, अब बारिश होने ही वाली है। तेज़ हवाएँ बड़े-बड़े पेड़ों को हिला रही थीं। रमा जल्दी-जल्दी अपने कदम बढ़ा रही थी, साथ ही बीच-बीच में पीछे की तरफ देख भी रही थी कि शायद कोई ऑटो वाला दिख जाए। मगर दूर-दूर तक किसी भी गाड़ी का आसार नहीं दिख रहा था।
सड़कें भी लगभग सूनी ही थीं — भला इस खराब मौसम में कौन बाहर निकलता! तभी रमा को लगा, कोई है उसके आस-पास। और यह एहसास जाना-पहचाना सा भी लगा। अचानक से रमा का डर कम हो गया।

रमा ने पीछे मुड़कर देखा तो एक ऑटो था। उसने हाथ से इशारा किया तो ऑटो रुक गया। करीब जाकर देखने पर उसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ दिखा। रमा आगे बढ़ने लगी, तभी उस व्यक्ति ने कहा —
“मैडम, बैठ जाइए। इस खराब मौसम में ऑटो मिलने में परेशानी होगी, कोई दिक्कत नहीं होगी।”

रमा ने दो पल को सोचा और फिर ऑटो में बैठ गई। पता नहीं क्यों, रमा को अपने बगल में बैठा व्यक्ति अजनबी होते हुए भी अजनबी नहीं लग रहा था।
और वह व्यक्ति चुपचाप नज़रें झुकाए ऑटो में बैठा था।

रमा के घर आने पर, वह ऑटो से उतरी और जैसे ही पैसे देने लगी, उस व्यक्ति ने कहा —
“मैंने ऑटो रिज़र्व किया था, मैडम। आप जाइए, आगे ही मेरा भी घर है।”

रमा कुछ नहीं बोल पाई और चली गई। और वह व्यक्ति आँखों से ओझल हो जाने तक रमा को देखता रहा।

तभी ऑटो चलाते हुए ड्राइवर ने कहा —
“क्या यार रमेश, कितना अच्छा मौका था अपने इश्क़ के इज़हार का, फिर भी तुम चुप रहे!”

रमेश मुस्कराया —
“कभी-कभी खामोशी में भी इश्क़ का अपना मज़ा होता है, तुम नहीं समझोगे।”

और हाँ… बहुत धन्यवाद मेरे यार — आज डॉक्टर से ऑटो ड्राइवर बनने के लिए।
“तुम्हारे लिए कुछ भी,” कहते हुए दोनों गले लग गए।

और खामोशी में लिपटे इश्क़ को महसूस करते हुए गुनगुनाने लगे…

चित्र सौजन्य: https://www.pexels.com/@ron-lach
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– रूचिका राय

Writer author Ruchika Rai

लेखिका परिचय:

रूचिका, हिंदी साहित्य की एक समर्पित साधिका, अपने भावों और संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में विश्वास रखती हैं। उनका जन्म 29 अक्टूबर 1982 को श्री राजकिशोर राय और श्रीमती विनीता सिन्हा के परिवार में हुआ। हिंदी में स्नातकोत्तर एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षण को अपना पेशा बनाया और वर्तमान में राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, तेनुआ, गुठनी, सिवान, बिहार में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।

साहित्य के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी एकल काव्य संग्रह “स्वपीड़ा से स्वप्रेम तक” और “तितिक्षा (भावों का इंद्रधनुष)” पाठकों द्वारा सराही गई हैं। उन्होंने “अभिनव अभिव्यक्ति (ए बांड ऑफ नवोदयन्स), इबादत की तामीर, अभिनव हस्ताक्षर, दुर्गा भावांजलि, शब्ददीप (इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल)” और “काव्यमणिका” जैसे साझा संकलनों में भी योगदान दिया है। इसके साथ ही, “अभिव्यक्ति (बांड ऑफ नवोदयन्स)” की उप-संपादक के रूप में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है।

कई साहित्यिक मंचों से पुरस्कृत रूचिका अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की कड़वी-मीठी सच्चाइयों और कोमल कल्पनाओं को साकार करती हैं। वे मानती हैं कि अनुभूत संवेदनाओं का कोई मोल नहीं होता और भावनाएँ ही जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संबल देती हैं।

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