नज़रें दिल की ज़ुबान
नज़रें भी न जाने कब, कैसे ज़ुबान बन जाती हैं,वो दिल के तार छेड़ती हैं, इज़हार कर जाती हैं। राज जो दिल में छुपाया था कितने ही जतन से,नज़रों में लिखी रहती हैं, अगर कोई पढ़ ले मन से।पढ़ने के लिए दिल की नज़र की होती ज़रूरत,नहीं पढ़ सकता इसे कोई बेशकीमती धन से। नज़रों […]