हमारे #RhymeShots चैलेंज के हिंदी विजेताओं की खूबसूरत कविताओं का आनंद लें। इस Elemental Tuesday पर, हमने लेखकों को “भीगी पलकें” विषय पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का निमंत्रण दिया।
विजेता कविताओं को पढ़ें, जो आंसुओं और जज़्बातों के उतार-चढ़ाव को बखूबी बयां करती हैं। इन भावपूर्ण रचनाओं के माध्यम से भावनाओं की गहराई में डूब जाइए।
ज़ख्म हज़ारों दिल में रख, ये आँखें जब मुस्काती हैं,
मन के गहरे भेद, ये भीगी पलकें सब कह जाती हैं।
कोशिश कर लें कितनी भी हम, दुनिया को बहलाने की,
लाख छुपाएँ दर्द को दिल में, खुद को ही समझाने की,
फिर भी बातें मन की गिरह खोल के बाहर आती हैं,
जब मन के गहरे भेद, ये भीगी पलकें सब कह जाती हैं।
ओढ़ के झूठे रंग की चादर, हम खुद को तैयार किए,
मन की पीर को छुपा के सबसे, खुशियों का श्रृंगार किए,
राज़ खोलती सूनी आँखें, चुपके से बह जाती हैं,
जब मन के गहरे भेद, ये भीगी पलकें सब कह जाती हैं।
– डॉ. पूजा गुप्ता
तुझसे मिलने की ख़ुशी में,
झसे बिछड़ने के ग़म में,
आँसू बहते थे अश्कों से,
तुझे याद करते हर क्षण में।
तेरे इश्क़ में सब जायज़ है,
ये सोच आँखों में बिताई रातें कई।
पर्दे में रखें जज़्बात अपने फिर भी,
आँखों की नमी छुपा नहीं पाई।
तूने देख कर अनदेखा कर दिया,
मेरी आँखों ने जो कुछ तुझसे कहा।
फिर भी इसी भ्रम में गुज़री उम्र,
कि तुझे इश्क़ है हमसे बेइंतहा।
और अब भीगी पलकें मेरी,
अधूरी-सी दास्तान बयां करती हैं।
प्यार का मौसम तो गुज़र गया,
ये बिन मौसम ही अक्सर बरसती हैं।
– निशा टंडन
भीगी पलकें, बिखरी अलकें,
नेहर की याद दिला जाती हैं।
सोचें भी तो कितना सोचें,
इक बदली सी छा जाती है।
घर की प्यारी रानी बिटिया वो,
कोई जादू की सी पुड़िया वो,
आँखों में जुगनू उड़ते फिरते,
अब बंद नमी की डिबिया वो।
अब आँगन भी नहीं पुकारे,
भाई-बहन भी व्यस्त हुए।
बाबा बिन तो बौराया मन,
जैसे घर के सूरज अस्त हुए।
भीगा मन और भीगी पलकें,
उन तक आह ले जाती हैं।
फिर बनकर वो लाख दुआएँ,
मुझ तक वापस आती हैं।
– मुस्कान सागर ‘सना’
भीगी पलकों में कितनी कहानी छुपी,
सैकड़ों दास्तानें अंजानी छुपी।
रोज़ देखा किया राह बेचारा दिल,
कितनी खोने की पीड़ा दीवानी छुपी।
राज़ कितने थे, दिल ने दफ़न कर लिए,
दर्द से भीगे-भीगे नयन कर लिए।
सारी तकलीफ़ें मुस्कानों से ढाँककर,
दूर आँखों से कितने सपन कर लिए।
भीगी पलकें झुकें, आह दिल से उठे,
भोली, मासूम-सी चाह दिल से उठे।
अब न आएगा वो लौटकर फिर कभी,
शबनमों से भी एक दाह दिल में उठे।
– हिमांशु जैन ‘मीत’