गर्मियों के आते ही मन अपने आप बचपन की गलियों में भटकने लगता है—गर्मी की छुट्टियाँ, नानी का घर, सभी कज़िन्स मिलकर मस्ती, शरारतें, और प्यारी-प्यारी बातें। और साथ ही उन ठंडी-ठंडी लज़ीज़ व्यंजनों का स्वाद जो आज भी जीभ पर ताज़ा है।
आज भले ही सुविधाओं की भरमार हो, लेकिन उस संतोष की बात अब कहां! आज यूँ ही बैठे-बैठे बचपन की गर्म दुपहरियों का स्मरण हुआ, और सत्तू की ठंडी तृप्ति याद आते ही मुँह में पानी भर आया।
मई की उमस भरी गर्मी, तेज धूप, न हवा का नामोनिशान और न बिजली। विद्यालय से लौटते ही कपड़े बदलकर हम बच्चे पास के बगीचे की ओर भागते। भूख तो थी, लेकिन गर्मी इतनी कि खाने की इच्छा ही नहीं होती। घर से बार-बार आवाज़ आती, “आ जाओ बच्चों, खाना खा लो,” और हम एक सुर में चिल्लाते — “जब तक बिजली नहीं आएगी, हम नहीं आएंगे!” फिर मस्ती में खो जाते।
बगीचे के पेड़ आम से लदे रहते। कच्चे आमों को देख मुँह में पानी आ जाता, पर तोड़ नहीं सकते थे — पहरेदार से डर लगता।
तभी पहरेदार चच्चा ने पूछा, “बच्चों, खाना नहीं खाए हो?” हम सब बोले, “नहीं।” उन्होंने कहा, “सत्तू खाओगे?” पहले तो सब हिचकिचाए, फिर जब उन्होंने केला का पत्ता काट कर उस पर सत्तू, आम की चटनी, प्याज़, मिर्ची और अचार सजाया — तो ललचाना स्वाभाविक था।
उन्होंने कहा, “बिटिया, इसमें चना, जौ और मक्का सब कुछ है।” फिर सत्तू को पानी से सान कर जैसे ही मुँह में रखा — वाह! जो संतोष मिला, वह आज तक किसी बड़े होटल के महंगे खाने में नहीं मिला।
गर्मी की दोपहर का वो सत्तू — आज भी स्वाद की यादों में रचा-बसा है। जब भी मौका मिलता है, उस स्वाद को दुहराना नहीं भूलती।
सिर्फ सत्तू ही नहीं — बेल का शरबत भी गर्मियों की खास सौगात था। स्वास्थ्य के लिए अमृत और स्वाद में बेमिसाल। पेट की बीमारियों में रामबाण और ताजगी से भरपूर।
और फिर आता है आम पन्ना। चिलचिलाती धूप और गर्म हवाओं से राहत देने वाला यह पेय — न केवल लू से बचाता है, बल्कि शरीर को ठंडक भी देता है। उबले कच्चे आम, मिश्री, सौंफ, काला नमक और पुदीने से बना आम पन्ना शरीर का रक्षक और मन का सुकून बन जाता।
प्रकृति जो देती है, वह समय के अनुसार ही होती है — गर्मियों में ये उपहार हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ स्वाद को भी संतुलित रखते हैं।
तो इस गर्मी में, प्रकृति प्रदत्त इन स्वादिष्ट और लाभकारी उपहारों को ज़रूर अपनाइए और सेहत का ख्याल रखिए।
Image Courtesy: By TOI Lifestyle Desk
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– रूचिका राय

लेखिका परिचय:
रूचिका, हिंदी साहित्य की एक समर्पित साधिका, अपने भावों और संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में विश्वास रखती हैं। उनका जन्म 29 अक्टूबर 1982 को श्री राजकिशोर राय और श्रीमती विनीता सिन्हा के परिवार में हुआ। हिंदी में स्नातकोत्तर एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षण को अपना पेशा बनाया और वर्तमान में राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, तेनुआ, गुठनी, सिवान, बिहार में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।
साहित्य के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी एकल काव्य संग्रह “स्वपीड़ा से स्वप्रेम तक” और “तितिक्षा (भावों का इंद्रधनुष)” पाठकों द्वारा सराही गई हैं। उन्होंने “अभिनव अभिव्यक्ति (ए बांड ऑफ नवोदयन्स), इबादत की तामीर, अभिनव हस्ताक्षर, दुर्गा भावांजलि, शब्ददीप (इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल)” और “काव्यमणिका” जैसे साझा संकलनों में भी योगदान दिया है। इसके साथ ही, “अभिव्यक्ति (बांड ऑफ नवोदयन्स)” की उप-संपादक के रूप में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है।
कई साहित्यिक मंचों से पुरस्कृत रूचिका अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की कड़वी-मीठी सच्चाइयों और कोमल कल्पनाओं को साकार करती हैं। वे मानती हैं कि अनुभूत संवेदनाओं का कोई मोल नहीं होता और भावनाएँ ही जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संबल देती हैं।