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खामोशी में लिपटा इश्क: प्यार जो कहा नहीं, बस महसूस किया जाता है

Silhouetted couple sitting by a calm lake under a serene sunset sky, enjoying the peaceful moment.

बड़े-बड़े ज्ञानी, जानकार, प्रेमी कह गए, समझा गए —
“इश्क और मुस्क छिपाए नहीं छुपता।”
ना भी हो तो ज़माना कहीं न कहीं चिंगारी से आग बना ही लेता है। अपने हाथ सेक कर, रोटी सेक, मूंछों पर ताव दे कह देता है — “देखा, कितनी पैनी नज़र है। लिफाफ़ा देख मजमून भांप लेते हैं, उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेते हैं, हमसे नहीं छुपा सकते। करो, जो करना है, खुलमखुल्ला करो। ये खामोशी में लिपटा इश्क क्या बला है, हम भी तो सुनें।”

इश्क चीज़ ही ऐसी है — किया नहीं जाता, हो जाता है।
कुछ बोलने-चिल्लाने की आवश्यकता नहीं, बस हो जाता है — खामोशी में लिपटा इश्क।

हो जाता है किसान को बीज से —
देख नहीं पाता गिरा बीज, एक-एक दाना उठा लेता है, चुपचाप साफे या एंटी में छुपा लेता है।

हो जाता है महिला कृषक को मिट्टी से —
सुखती, टूटती मिट्टी को जल से सींच, कुदाली से नर्म कर देती है। हाथ, पैर, चेहरे पर लपेट लेती है।

हो जाता है मेकैनिक को मशीन से —
मशीन दिखी, धीरे से चला दी। नहीं चली तो तेल पिला दिया, ग्रीस डाल दी, हिला-डुला कर चालू कर दी।

हो जाता है लोहार को धौंकनी से —
खांसते-खांसते भी पिचकी धौंकनी में हवा भर कर फुला देता है। आग जगा कर औज़ार बना देता है।

हो जाता है लेखिका को लेखनी से —
विचार आते ही, समय हो ना हो, लेखनी और कागज़ का हस्तलिपि में मिलाप करवा ही देती है।

हो जाता है संगीतकार को वाद्य यंत्र से —
हल्के-हल्के थाप दे, कोई सुने ना सुने, संगीतकार वाद्य यंत्र पर मुलायम उंगली फेरता रहता है।

हो जाता है कलाकार को मंच से —
मंच देख रोम-रोम खिल जाता है, धड़कन बढ़कर पग को मंच पर ले जाती है। मंच पर ही चैन मिलता है।

हो जाता है माँ को अजन्मे शिशु से —
महसूस हो जाता है नव जीवन। ना रुदन, ना किलकारी — आह लात मारी, फिर भी चाह तुम्हारी।

हो जाता है भक्त को भगवान से —
ना मूरत, ना ध्वनि, ना आकार, ना छुअन, ना चुभन। ब्रह्मांड का अंधकार — फिर भी आशा की किरण।

हो जाता है इम्रोज़ को अमृता से —
वो जिसे चाहे, साहिर का नाम लिखवाए, प्रीतम कहलाए, ज़माने को कुछ भी बतलाए।

इश्क चीज़ ही ऐसी है — किया नहीं जाता, हो जाता है।
कुछ बोलने-चिल्लाने की आवश्यकता नहीं, बस हो जाता है। खामोशी में लिपटा इश्क अपने में मग्न जी जाता है।

बीज, मिट्टी, मशीन, आग, लेखनी, वाद्य यंत्र, मंच, शिशु, भगवान, अमृता बन — खामोशी में लिपटा इश्क पनप जाता है।

इश्क किया नहीं जाता — हो जाता है।

चित्र सौजन्य: https://www.pexels.com/@dellsad/
अगर आपको मेरा ब्लॉग पसंद आया हो, तो नीचे कमेंट में अपने दिल की बात ज़रूर लिखें।

– मधु मेहरोत्रा

Writer Madhu Mehrotra

लेखिका परिचय:

मधु मेहरोत्रा एक समर्पित लेखिका और विचारशील कथाकार हैं, जिनका लेखन पहाड़ी जीवन की सरलता, मानवीय भावनाओं और सामाजिक जागरूकता को उजागर करता है। उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं:

  • Of Hills N Vales – पहाड़ी जीवन पर आलेख
  • Turbulence and Tranquility in Trains – रेल यात्रा के अनुभव और भावनाएँ
  • The Child in Us – बचपन की यादें और अनुभव
  • Gems of Short Fiction – विभिन्न भावनाओं पर आधारित लघु कथाएँ
  • Where The Rhododendron Blooms – प्रकृति और उसकी सुंदरता पर कविता
  • All Weather Tales – विविध विषयों पर आधारित कहानियाँ
  • The Bridge And Other Stories – शहरी कल्पना और मानवीय संबंध
  • Affectionate Echoes – A Romantic Anthology, Volume I – प्रेम और स्नेह की सूक्ष्मताएँ
  • In Pursuit of Perseverance – दृढ़ता और संकल्प की कहानियाँ

अपने लेखन के माध्यम से, वे आम लोगों के जीवन, प्रकृति की सुंदरता और दिल को छू लेने वाली कहानियों को पाठकों के समक्ष जीवंत करती हैं।

मधु मेहरोत्रा कहती हैं — “मैंने अपना जीवन पहाड़ों में जिया है — क्षणभंगुर, शांत, आज यहाँ, कल कहीं और।”

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