क्या प्यार को एक दिन में दिखाया और बांधा जा सकता है? प्यार के मायने कभी ऐसे तो न थे। पहली बार किसी से मिले और उसे दिल दे बैठे, जीने-मरने की कसमें खा लीं। हां, प्रेम के किस्से सुनते आए हैं—
हीर-रांझा, लैला-मजनू, शीरी-फरहाद,
जो एक-दूसरे के प्यार में मर मिटे।
सच है कि प्रेम दिमाग से नहीं, दिल से होता है।
आजकल प्रेम में दिमाग लगाने लगे हैं, खुशियों को भूलकर नफा-नुकसान देखने लगे हैं। शुरुआत भले ही प्रेम से हुई हो या कह लो कि वह प्रथम आकर्षण रहा, लेकिन उसके बाद वह नशा रफूचक्कर हुआ और वे आ गए ज़मीनी हकीकत पर, जो कभी प्रेम के पंख लगाकर आसमान में उड़ते फिरते थे।
चॉकलेट देकर, एक दिन गुलाब थमाकर, प्यार की झप्पी देकर—
क्या बस एक दिन की ही जरूरत है?
लगता है जैसे एक दिन में ही प्रेम के बुद्ध बन जाते हैं।
दूसरे देशों की संस्कृति हम पर क्यों इस कदर हावी हो?
वहां तो लोगों के पास न वक़्त है, न भावनाओं की गहराई कि वे रोज़ इज़हार कर सकें।
पर हम क्यों प्यार का इतना दिखावा और आडंबर करते हैं?
जब हम वेलेंटाइन डे नहीं मनाते थे, तब क्या प्यार अधूरा रह जाता था?
प्यार का इज़हार तो बिना कुछ दिए-लिए भी हो जाता था।
कभी मन की भावनाएं लिखकर, कभी आँखों ही आँखों में—
एक हल्का सा स्पर्श भी अनजाने में बहुत कुछ ज़ाहिर कर देता था।
प्यार करने वाले तो एक-दूसरे की केयर कर अपनी भावनाएं व्यक्त कर देते थे।
दोनों इस मूक संबंध को समझ लेते थे।
सच्चा प्यार आत्मा से जुड़ता है।
जो अपने साथी का अहित न चाहे, चाहे उसे निजी कुछ भी त्यागना पड़े।
एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना भी प्रेम कहलाता है।
अपने प्यार पर हावी होना प्रेम नहीं, प्रेम के लिए स्वयं ही प्रेम होना पड़ता है।
जहां दोनों बराबर हों और एक-दूसरे की कमियों को स्वीकारें।
जहां एक-दूसरे के कष्टों में साथ देकर संबल बनें।
कैसे भी हालात आएं, मिलकर सामना करें और दूसरे का मनोबल बढ़ाएं।
भले ही परिस्थितियों के चलते दूर होना भी पड़े, तब भी वह दूरी आपको दूरी न लगे।
प्यार यही होता है—जो शरीर से नहीं, रूह से होता है।
जो बिना कुछ कहे तुम्हारी मूक भाषा को समझ ले, वही प्यार है।
आज के समय में आकर्षण को भी प्यार की संज्ञा दी जाने लगी है।
अगर किसी ने अपने स्वार्थवश आपकी तारीफ कर दी, तो आप उसे प्यार समझ बैठते हैं।
यही सबसे बड़ी भूल होती है और आप ठगे जाते हैं।
कहते हैं, प्यार अंधा होता है—
सच में, उसे ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी, जाति-धर्म नहीं दिखता।
दोनों सोचते हैं—”हम बिल्कुल एक जैसे हैं।”
लेकिन जब संस्कार सामने आते हैं, तो विचारधारा ही भिन्न हो जाती है।
यही आज का इंटरनेट वाला प्रेम है, जो अक्सर धोखा बन जाता है।
मीठी बातों के जाल में लोग फंसते चले जाते हैं।
कहने को ढाई आखर प्रेम का है, पर यह शब्द अथाह सागर की तरह गहरा है।
हर कोई इसकी तलहटी तक नहीं पहुँच सकता।
प्यार ऐसा एहसास है, जो तब तक साथ रहता है जब तक उसमें कोई स्वार्थ न हो।
जहां स्वार्थ आ गया, वहां प्रेम नहीं, व्यापार शुरू हो जाता है।
निःस्वार्थ प्रेम करोगे तो भरभर कर पाओगे, नहीं तो व्यापारी ही कहलाओगे।
प्रेम ऐसा भाव है, जो दूसरे को अपने में समाहित कर ले।
प्यार से गले लगाकर उसके कष्टों को हर ले।
यह एक दिन का सेलिब्रेशन नहीं, जीवनभर निभाने का साथ है।
Image Courtesy: by Pegah Sharifi via Pexels
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– मीनाक्षी जैन

लेखक परिचय: मीनाक्षी जैन
- जन्म स्थान – दिल्ली
- शिक्षा – दिल्ली
- योग्यता – क्लिनिकल साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन
मीनाक्षी जैन ने विदेशी सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर भारत के दूर-दराज़ गांवों में पेंटोमाइम के माध्यम से शिक्षा से जुड़े कई कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने दूरदर्शन पर भी अपनी प्रस्तुतियाँ दीं।
इनकी लेखनी समाज, संस्कृति और मानवीय भावनाओं की गहरी समझ को उजागर करती है।
इनकी रचनाएँ न केवल पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी प्रदान करती हैं। इनके कार्यों में गहरी विचारशीलता और संवेदनशीलता झलकती है, जो पाठकों को प्रेरित करती है।