नवरात्रि केवल उत्सव नहीं है, बल्कि हमारे भीतर की देवी शक्ति और साहस को पहचानने का समय है।
Day 2 पर हमने “अजेय” शीर्षक दिया था, और यहाँ प्रस्तुत हैं हमारे लेखकों द्वारा लिखी गई कुछ चुनिंदा कहानियाँ और कविताएँ।
1.
हालातों के ऊँच-नीच से
जो नहीं कभी घबड़ाते हैं।
अजेय वही जो जीवन रण में
निर्भीक कदम बढ़ाते हैं।
तूफानों का डटकर सामना कर
जो हिम्मत अपनी दिखाते हैं।
काँटों भरी राह की दुश्वारियां
जो हँसकर सहते जाते हैं।
अजेय वही जो धैर्य संयम से
जीवन को जीते जाते हैं।
मन में नहीं कोई द्वेष रखते,
सबका साथ निभाते हैं।
मन के विकारों को दूर कर
जो इंसानियत का धर्म निभाते हैं।
स्नेह, ममता, सहनशीलता जैसे
स्त्रियोचित गुण को सदा अपनाते हैं।
— रूचिका राय
2.
तुम मातृभूमि के लाल हो,
तुम ह्रदय से विशाल हो।
अजेय तुम हो, अमर हो तुम,
तुम वीरता की मिसाल हो।
तुम्हारे ही चरणों को छूकर
माटी देश की चंदन हुई।
जहाँ-जहाँ कदम पड़े तुम्हारे
वो भूमि रज वंदन हुई।
प्राण न्योछावर किये पर
शीश न तुमने झुकने दिया।
रक्षा की ख़ातिर देश की
दुश्मन को न घुसने दिया।
शौर्यगाथा अपरिमित तुम्हारी,
तुम वक्त की मशाल हो।
बलिदान तुम्हारा अमर रहेगा,
अजेय तुम हो, अमर हो तुम,
तुम वीरता की मिसाल हो।
— रुचि असीजा “रत्ना”
3.
अंधेरों की गहराई में,
जब उम्मीद भी सो जाती है,
साहस की लौ बनकर,
अजेय आत्मा जग जाती है।
हर ठोकर से सीखकर,
हर घाव से निखरकर,
संघर्ष की धूप-छाँव में,
मन फिर से सँवरकर।
झंझाओं के बीच खड़ा,
तूफ़ानों से न डरने वाला,
वही है सच्चा योद्धा,
वही है जीतने वाला।
हार उसे छू न पाए,
डर उसका साथी न बने,
जो अपने विश्वास में डटा,
वही अजेय कहलाए।
उसकी दृष्टि सपनों पर टिकती,
उसकी धड़कन हौसलों को लिखती,
वक्त की कठोर जंजीरें भी,
उसकी उड़ान न रोक पातीं।
अजेय है वह,
हर कदम पर जीत रचता है।
— संध्या रानी दाश
यहाँ प्रस्तुत हर कविता और कहानी अजेय होने की आवाज़ है—संघर्ष, साहस और आत्मबल से भरी।
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