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नज़रें दिल की ज़ुबान

A couple in historical costumes sharing an intimate moment indoors with soft lighting.

नज़रें भी न जाने कब, कैसे ज़ुबान बन जाती हैं,
वो दिल के तार छेड़ती हैं, इज़हार कर जाती हैं।

राज जो दिल में छुपाया था कितने ही जतन से,
नज़रों में लिखी रहती हैं, अगर कोई पढ़ ले मन से।
पढ़ने के लिए दिल की नज़र की होती ज़रूरत,
नहीं पढ़ सकता इसे कोई बेशकीमती धन से।

नज़रों के दस्तूर को अगर दुनिया समझ जाए,
ज़ुबान की नहीं ज़रूरत, मौन को ही पढ़ पाए।
ना कोई उलझन रहे, ना कोई पाबंदी लिपि की,
बस आँखों में देखें और उलझन सुलझ जाए।

नज़रों में इकरार है और देखो तो तकरार भी है,
अगर कभी रूठ जाए, नज़रों में मनुहार भी है।
नज़रों का कमाल क्या कहे, ये दिल बता दे ज़रा,
नज़रों में देखें अगर, तो भर-भरकर प्यार भी है।

नज़रों की चमक दिल की खुशी चेहरे पर लाए,
नज़रें झुके हया से, प्रेम में प्रेमी से जब शरमाए।
नज़रों का कमाल कैसे छुप सकता है, यार भला?
वियोग में नज़रों के कटोरे से जल छलक जाए।

नज़रें दिल में छुपी नफ़रत को बरबस दिखा दें,
लाख चाहे छिपाना, मगर वो ज़माने को बता दें।
नज़रें कुछ यूँ दिल के हाल को बयां कर देती हैं,
नज़रें मौन रहकर दिल की कहानी सुना देती हैं।

नज़रों में देखो, तो कई प्रश्न उसमें दिख जाएंगे,
कितनी अनसुलझी गांठें उसमें नज़र भी आएंगी।
सुलझाने का लाख जतन दिल ये करे बार-बार,
मगर कितने प्रश्न कभी, यारों, सुलझ पाएंगे?

नज़रें कभी तुम्हारे संग मुझे लेकर दूर चली जाएं,
कभी पहाड़ों, कभी नदियों के पास सुनहरे लम्हें बिताएं।
ख़्वाबों के पंख लगाकर उड़ूं मैं प्यार के जहां में,
वहाँ बस तू ही तू हर तरफ़ नज़र आए, प्यार के रंग जमाए।

कभी अचानक से डरता है ये मेरा मन, नज़रों की ये अदा है,
सारे राज़ दिल के न खोल दे, उससे, जिस पर ये फ़िदा है।
नज़रों की इस शरारत का कुछ अलग ही, यारों, मज़ा है,
कोई भी दिल नहीं नज़रों की इस आदत से जुदा है।

नज़रें ना जाने कब, कैसे आँखों से नींद चुरा लेती हैं,
कुछ इस तरह की मनमर्ज़ियां कर वह हमको सताती हैं।
नज़रों के इस खेल में जो भी उलझ जाता है, यारों,
नज़रें फिर प्यार करना उसको सिखा देती हैं।

नज़रें दिल की ज़ुबां बन फिज़ा रंगीन कर देती हैं,
मौन लब रहता है और ये सारे हाल बयान कर देती हैं।

Image Courtesy: By cottonbrostudio via pexels
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– रूचिका राय

Writer author Ruchika Rai

लेखिका परिचय:

रूचिका, हिंदी साहित्य की एक समर्पित साधिका, अपने भावों और संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में विश्वास रखती हैं। उनका जन्म 29 अक्टूबर 1982 को श्री राजकिशोर राय और श्रीमती विनीता सिन्हा के परिवार में हुआ। हिंदी में स्नातकोत्तर एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षण को अपना पेशा बनाया और वर्तमान में राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, तेनुआ, गुठनी, सिवान, बिहार में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।

साहित्य के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी एकल काव्य संग्रह “स्वपीड़ा से स्वप्रेम तक” और “तितिक्षा (भावों का इंद्रधनुष)” पाठकों द्वारा सराही गई हैं। उन्होंने “अभिनव अभिव्यक्ति (ए बांड ऑफ नवोदयन्स), इबादत की तामीर, अभिनव हस्ताक्षर, दुर्गा भावांजलि, शब्ददीप (इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल)” और “काव्यमणिका” जैसे साझा संकलनों में भी योगदान दिया है। इसके साथ ही, “अभिव्यक्ति (बांड ऑफ नवोदयन्स)” की उप-संपादक के रूप में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है।

कई साहित्यिक मंचों से पुरस्कृत रूचिका अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की कड़वी-मीठी सच्चाइयों और कोमल कल्पनाओं को साकार करती हैं। वे मानती हैं कि अनुभूत संवेदनाओं का कोई मोल नहीं होता और भावनाएँ ही जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संबल देती हैं।

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