प्रेम का दर्पण मन की छवि को दिखाता है,
इन शब्दों में दिल की धड़कन बसाता है।
हम गर्व के साथ “प्रेम का दर्पण” शीर्षक के तहत चुनी गई विजेता कविताओं को प्रस्तुत करते हैं। ये कविताएँ प्रेम के वास्तविक रूप, उसकी शुद्धता और जीवन में उसकी अनमोल भूमिका को उजागर करती हैं। इन रचनाओं के माध्यम से प्रेम की शक्ति और उसकी पारदर्शिता को महसूस करें, जो हर दिल को छू जाती है।
जितने हो रहे हैं आधुनिक, पाप बढ़ रहे हैं उतने,
जितना सीख रहे हैं विज्ञान, संस्कार भूल रहे हैं उतने।
उलझनें साँसों संग आने-जाने लगी हैं,
ज़िंदगी हर पल एक जंग जैसी डराने लगी है।
बीमारियों की आग सारे संसार को जला रही है,
खुशी पाने को नज़र हर पल तरस रही है।
ऐसे में एकमात्र विकल्प है प्रेम,
कर लो एक-दूसरे से, चारों ओर उगा दो प्रेम।
यही एक दर्पण है जिसमें दिखेगा परमात्मा और उनका भेद,
यहीं दिखेंगे सत्य, धर्म, अहिंसा, मुक्ति और मोक्ष के वेद।
– स्वाति गर्ग
आओ न प्रिय! देखें मिल प्रेम का दर्पण,
तुमको मेरा प्राणों से, प्यार भरा निमंत्रण।
देखो न! कैसे छिपा रखा है,
तुमको अपने हृदय के अंदर।
मौन भले रहती मैं हरदम,
क्या जान न पाते मेरा अंतरमन!
ऋतुएँ बदल-बदल फिर आतीं,
आने की मैं तेरी आस लगाती।
याद करूँ, पर तू लौट न आता,
धीरज मेरा अब खोता जाता।
हृदय झरोखा खोल मैं तकती,
जाने कब आ जाओ, सोचा करती।
कल्पनाओं में मैं खोई रहती,
पर मुझको न मेरी सुध रहती।
स्वीकारो मुझ बिरहन का निमंत्रण,
आओ न प्रिय! देखें मिल प्रेम का दर्पण।
तुम पर, प्रिय, मेरा जीवन अर्पण।
– मीनाक्षी जैन
प्रेम का दर्पण झाँककर देखो,
प्रेम ही प्रेम दिखेगा।
जहाँ प्रेम का पुष्प खिलेगा,
उर उपवन निखरेगा।
धुंध न जमने देना इस पर,
यही मिलाता है रब से।
प्रेम यदि बाँटोगे सबको,
प्रेम ही पाओगे सबसे।
जमने लगे धूल जब इस पर,
प्रेम के जल से धोना इसको।
छल, कपट, अभिमान, दंभ से,
सदा बचाना होगा ख़ुद को।
प्रेम भरी कोयल की बोली,
दिल को बड़ा लुभाती है।
प्रेम के दर्पण की छवि न्यारी,
ग़ैरों को अपना बनाती है।
दर्पण नहीं झूठ बोलता,
जो दिखता है वही बोलता।
पारदर्शिता इसकी उज्ज्वल,
सही मापता, सही तौलता।
– रुचि असीजा “रत्ना”