नवंबर की धुंध में लिपटे अल्फ़ाज़

कभी धुंध की चादर, कभी खिली हुई धूप,इसी सुख-दुख के मिश्रण से बना है जीवन का रूप।धुंध में भी रास्तों को ढूंढ़ना है ज़िंदगी का सार,तभी ला पाएंगे हम अपने जीवन में बहार। – लालिता वैतीश्वरण ये जो धुंध सी छाने लगी,सुबह भी अब धुंधली नज़र आने लगी।एक-एक कदम बढ़ाऊं तो छंटती जाती है,ज़िंदगी की […]

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