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ये सिलसिला

लेखिका: नेहा खनवानी

एक आम सी लगने वाली मुलाकात ,
रोज़ की बातों में बदली,
कब ये बातें फ़िक्र, लगाव , ज़िक्र और प्यार में बदली पता ही नहीं चला।

सही और गलत के दायरों से परे,
पास और दूर की सच्चाई से जुड़ा ,
कुछ गहन जैसे अनदेखे तारों सा,
धरती और आसमान के पाक प्यार सा,
बनारस में बहती हुई गंगा के अविरल प्रवाह सा,
चाँद की शीतल रौशनी सा,
हमारा ये अनोखा रिश्ता बना।

सरलता और संजीदगी के धागो से बंधा हुआ ,
सहजता और संयम से चुना हुआ,
छोटे छोटे लम्हों में झलकती ज़िन्दगी के रंगो सा ,
सितारों वाली रात में सिर्फ तुम्हारे लिए लिखी हुई ग़ज़ल सा,

तेरा मेरा ये रिश्ता ,
यूँही बना रहे ,

यक़ीन और वादों की झड़ से झूड़ा हुआ,
ख्वाबो से भी बेहतरीन,
समंदर की गहराइयों सा ,

अनदेखा, अनोखा,
दुनिया के बंधनो से मुक्त ,
तेरा मेरा ये रिश्ता ,
यूँही बना रहे।

में तुझ में खोयी रहूँ, तू मुझमें समाया रहे,
हमेंशा, बस यूँही,
में तेरी रहूँ और तू मेरा रहे।

About the Author: Neha Khanvani is an educator, counsellor, and nature lover. She loves reading and writes on the topics that connect with her. She believes in the beauty of dreams, magic of stories and power of kindness. Poetry is her new love, now a days she is trying her hands on it with the blend of emotions and expressions.


4 thoughts on “ये सिलसिला”

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