“साँसों की डोर” के अंतर्गत हमारे लेखकों ने जीवन के संघर्षों, प्रेम, और उम्मीदों की ऐसी कहानियाँ प्रस्तुत की हैं जो दिल को छू जाती हैं। विजेताओं की इन उत्कृष्ट कहानियों को पढ़ें और उनके शब्दों में छिपे जज़्बातों को महसूस करें।
किशोर एक निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखता था। वह बहुत ही मेधावी था। परिस्थितियाँ उसके अनुकूल नहीं थीं, पर वह बड़े-बड़े सपने देखा करता था। खेती और ट्यूशन की आमदनी से घर का खर्च किसी तरह निकल जाता था। उसके पिता ल्यूकेमिया रोग से ग्रसित थे। उनकी ज़िंदगी की उम्मीद बहुत कम बची थी, पर वह “साँसों की डोर थामे, ख्वाहिशों के मोती पिरोते, हर पल, हर कदम, एक नई कहानी संजोते” हुए अपने इरादों पर अटल रहा।
क़िस्मत ने भी उसका साथ दिया। रिश्तेदारों से क़र्ज़ लेकर उसने एक बड़े अस्पताल में पिताजी का इलाज़ कराया। तत्पश्चात, रात-दिन एक कर उसने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और पहले ही प्रयास में यूपीएससी क्रैक कर आईएएस ऑफिसर के पद तक पहुँचने में क़ामयाब हुआ।
– अजित कुमार “कर्ण”
दादी माँ ने ही कमल को पाल-पोस कर बड़ा किया था। आज वह बिस्तर पर थीं। कमल को जैसे ही पता चला, वह तुरंत दादी माँ से मिलने चल पड़ा। उसे देखते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई, मानो उनकी साँसों की डोर उसे देखने के लिए अटकी हो।
“मैं तो समझी थी कि इस जन्म में तुम्हें नहीं मिल पाऊँगी। अब मुझे कुछ नहीं होगा। अब तो मैं बहू को देख कर ही जाऊँगी।” यह कहते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए।
कमल ने अश्रूपूरित आँखों से उन्हें विदाई दी।
– सरिता खुल्लर