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आंचल: साड़ी में सजी कहानियों की बुनावट

World Saree day
हमने #MiniShots और #SoloShots के तहत अपने लेखकों से साड़ी के अद्भुत जादू को बयान करने के लिए 50 शब्दों में कोट्स, कथानक या छोटी कहानियां लिखने का निवेदन किया।

उनकी भावनाओं और साड़ी से जुड़े खूबसूरत किस्सों को पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़ें।

सिर पर सजे, कभी हवा में लहराए,
आसमां भी देख, हैरान रह जाए।
ममता, दुलार, आस्था, सम्मान जैसे,
अनगिनत सितारे जब झिलमिलाएं।
आँचल में है दूध और आँख में पानी,
सुनो, ये बातें पुरानी हो गईं।
आँचल को परचम बनाकर फहराने की,
अब तो पुरजोर कोशिश है जारी….!
– शाहीन खान

माँ के आँचल में
जन्नत है सारा,
थके-हारे दिल में
सुकून का बसेरा।
फटे हुए पल्लू,
कभी माँ बेसहारा,
पर उसी पल्लू से हिम्मत,
कभी नहीं हारा।
– सोमा मुखर्जी

जब-जब… ईश के प्रति समर्पण अंतहीन बन जाता है,
तब-तब… आँचल का एक धागा द्रौपदी का अक्षुण्य चीर बन जाता है।
– अलका निगम

प्रकृति ने बहुत ही खुबसूरत और रंग-बिरंगी दुनिया बनाई,
पर माँ के आँचल में जो सुकून मिलता, वैसा कहीं और नहीं।
सारे संसार में गहराई से ढूँढ कर देख लिया,
पर इस जग में माँ के जैसी दुनिया में और कोई नहीं।
– कांता कांकरिया

कहाँ गया वो माँ का आँचल,
जिसे ओढ़ कर मैं सोता था।
कोई खिलौना, अगर टूटे तो
उसमें छुप कर रोता था।
आँसू जो टपके आँखों से,
आँचल से पोंछ देती थी माँ।
आँचल में से बरसती थीं
बूंदें प्यार-दुलार की।
दिन बदले, दुनिया बदली…
बस यादें हैं उस फुहार की…
– ललिता अय्यर वैथीस्वरण

लहराता माँ का स्नेहिल आँचल हमें अपने अनमोल होने का एहसास कराता है,
जब भी दुखों ने डेरा डाला, आँसू पोंछे आँचल ने, सबकी बुरी नज़र से यही बचाता है।
– तनुजा श्रीवास्तव

आँचल माँ का हो तो सारी परेशानियाँ मिटा देता है,
आँचल पत्नी का हो तो गांठ बाँध संग जीवन भर चलता है,
आँचल प्रेमिका का हो तो दुनिया की अनमोल छाँव देता है,
आँचल बहन का हो तो बचपन सरल और सहज बना देता है,
आँचल किसी का भी हो, हर स्थिति में अजय अस्त्र साबित होता है।
– मेघा सोनी

तपन को मुश्किलों की जो कर दे शीतल अपने स्पर्श से,
फैले जो बन कर झोली, भर दे वो ईश्वर हर्ष से।
आशीषों के कवच से, श्रंगार के सम्मान तक,
संस्कारों की खुशबू से, स्त्रीत्व के स्वाभिमान तक।
कर्तव्यबोध एवं प्रतिभा से सुसज्जित आंचल,
फहराए मानस हृदयातल से आसमान तक।
– पारुल कंचन

उत्तम, संयमित, सुंदर के साथ आधुनिक,
६ गज की साड़ी हमेशा से रही आकर्षक और पारंपरिक,
हर अवसर से त्योहार तक,
बनाई अपनी आँचल को आदर्श प्रतीक और आकर्षक रूप।
शब्दों से बढ़कर है इस आँचल की गरिमा और शालीनता,
यह है वास्तव में आत्मा का परिधान और छाया।
– सुधा रानी पति

वो लहराता आँचल सुर्ख रंगों में डूबा,
नित्य नए रंगों में लिपटा,
एक रंग-रूप कभी न बदला,
माँ का प्यार और आशीष,
अपने आँचल में मुझे छुपा लेना,
खुद तपती धूप और ठंड में सुलगना,
और मुझे शीतल आँचल में छुपाकर रखना,
माँ, तेरा वो आँचल बहुत याद आता है।
– मोना

ममता के समंदर की पहचान है आँचल,
नारी के सौंदर्य का स्वाभिमान है आँचल,
अबोध अठखेलियों की जुबान है आँचल,
नटखट रास लीला की मिठास है आँचल,
भ्रातृ कलाई पर बहन का मान है आँचल,
धरा क्षितिज उढ़ाता आसमान है आँचल।
– मणि सक्सेना

आशीष भरे आँचल की छाया,
माँ बन जाती है,जब दुनिया तपती राहों में, हमें जलाती है।
ज्वार भावनाओं का जब भी, उद्वेलित हो मन में,
माँ बनकर बौछार प्रेम की, ख़ुशी लुटाती है।
– हिमांशु जैन मीत

हमारी खूबसूरत संस्कृति का पर्याय है आँचल,
गोरी का सोलह श्रृंगार है आँचल।
बजती है पाँवों में पैजनियाँ छमछम,
खिली है मुस्कान रुख़ पे मद्धम मद्धम।
लहराता है आँचल जब तन पर,
सुंदरता कायनात की सिमट जाती है इनमें ही मचलकर।
– पुष्पा कर्ण

ये आँचल नहीं, पनाहगाह है,
जो दर्द के हर लम्हे में सुकून दे।
मुश्किलों में प्यार की छाँव तले,
राह की बाधाओं को चुन दे।
परंपराओं को निभाते हुए,
खूबसूरती को निखारे सदा।
जमाने की ताल से ताल मिला,
मर्यादाओं से सँवारे सदा।
– रूचिका राय

आँचल ममता का अगर प्रतीक है,
तो एक औरत का मान-सम्मान भी।
माँ की गोद की गहराई है अगर,
तो सिर को ढकता आसमान भी।
आँचल के तले कोई महफ़ूज़ है,
तो किसी के आँसूओं की पनाह है यहाँ।
किसी के अनकहे जज़्बात हैं,
तो किसी का है सारा जहाँ।
– निशा टंडन

आंचल की गरिमा को नौवीं कक्षा में ही, माँ ने समझा दिया,
मेरी सदी में उसी लिबास का चलन था, जिसे हृदय में बसा दिया।
साथ में सलवार कमीज़ का चलन भी प्रचलित था,
पर हम दक्षिण भारतीय केवल साड़ी को ही अपनाते थे।
आंचल आँख के तारों के अश्रु कभी पोंछता,
कभी रसोई में खाना पकाते वक्त, हाथ भी पुछवा देता।
लाज का घूंघट खींचने पर भी मजबूर कर देता,
मर्यादा का पर्याप्त मान भी अवसर देख रखवा लेता।
– उमा नटराजन

आंचल शब्द भारतीय नारी के लिए बना है,
जिसमें वह समेटती है माँ की ममता और मिठास।
तन को ढक कर बचाती है अपनी लाज,
सौंदर्य में चार चांद लगाता,
आंचल ढककर भी, रूप निखर कर आता।
नारी की गरिमा को दर्शाता, स्वाभिमान को बचाता।
आंचल शब्द अपने को सत्य सिद्ध कर जाता।
– प्राची अग्रवाल

माथे पे कुल की लाज, पैरों में संस्कारों की पायल,
प्रीत की लगा बिंदिया, ओढ़ कर्तव्य का आँचल।
समर्पण का किया श्रृंगार, परिवार पे हो गई निछावर,
तभी तो स्त्रियाँ पूजी और समझी जाती दिलावर।
– अनीता सुराणा

सिमटी है जहाँ की, खूबसूरत बादशाहत,
दर्द, मर्ज, शिकवे, शिकायत, आंचल की ओट में होते आहत।
सुकून का पर्याय है, धूप-छांव सी जिंदगी में,
इबादत सा महसूस होता है, ग़मों की तिश्नगी में।
– स्मिता सिंह चौहान

मेरे पीछे पीछे आँचल पकड़े,
आँगन से रसोई तक आता,
हर वक़्त कोई ना कोई सवाल लिए,
कभी हंस देती ,कभी डाँट देती,
जाने कब बड़ा होगा यह सोचती,
और अब उसी आँचल से आंसू पोंछते,
सोचती हूँ कब आएगा वह फिर,
कब पकड़ेगा मेरा आँचल !
– सरिता खुल्लर

उसके देश पर आँच न आये,
नारी आँचल को कमर में बाँध,
हाथ में परचम उठा लेती है।
वही अपने बच्चे की भूख मिटाने को,
लज्जा त्याग आँचल में ढांक लेती है।
अबला न समझना न कहना उसे,
एक बार लहरादे आँचल अपना तो,
बाँध उसमें सारा जहाँ लेती है।
– मीनाक्षी जैन

नारी की दास्तां है यह अजीब जिंदगी की,
संस्कारों की खातिर जख्म सीने में लिए,
उम्मीद का आंचल ओढ़कर,
प्रेम का पुष्प सबके मन में खिला देती है।
– विधि जैन

ऑंचल को बस इक परिधान कहें,
या हर स्त्री का आत्मसम्मान कहें!
इसे कई परंपराओं का निर्वाह कहें,
या सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य कहें!
मैला ना हो कभी किसी स्त्री का ऑंचल,
भावना, परंपरा व संबंधों का ये अद्भुत संगम!
इज़्ज़त-आबरू, मान-मर्यादा व रीति-रिवाज,
समेटे कई चीज़ों को, सजावटी पल्ला ये ख़ास!
– अजित कर्ण

आंचल सृष्टि का आधार
ममता संवेदना का संसार
समर्पण, संबल, शौर्य, सृजन की है ये प्रबल बुनियाद
परंपरा की छांव में
आधुनिकता का ये संचार
ये केवल वस्त्र नहीं
सभ्यता का सजीव प्रमाण
संस्कृति के धागों से गूंथा
नवीनता की ओर उद्यमान।।
– विदुषी महाजन पारेख

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