दुनिया की भीड़ में खुद को भुलाने से पहले,
दर्द के दरिया में तन्हा हो डूब जाने से पहले,
ज़िंदगी चाहती थी कुछ पल प्रकृति का संग,
नकारात्मकता के रंग में रंग जाने से पहले।
प्रकृति की गोद में कुछ लम्हा जाकर बिताया,
दिल को उसने हौले से जाकर के समझाया,
सुकून और शांति की तलाश में नहीं भटकना,
प्रकृति के रंग में रंग उसने स्वयं को दिखाया।
उदासी की चादर ओढ़े मैं चुपचाप बैठी थी,
स्वयं से नाराज़ होकर मैं स्वयं से ऐंठी थी,
जीवन के उठापटक ने था मुझको उलझाया,
दुःख आकर के जीवन में मानो मेरे पैठी थी।
नई कोंपलें जब पौधों में नाज़ुक सी फूटती हैं,
कोमल मन की नादानियां मन चूमती हैं,
धीरे-धीरे बढ़ती कोंपल जीवन का यह संदेश दे,
कैसे जीवन प्रगति पथ पर बढ़ नभ को छूती है।
बैठे-बैठे ख़्याल एक मन में चुपके से आया,
आकर के उसने मुझको प्यार से समझाया,
गिरते हुए पत्तों से सीख लो जीवन सबक,
जीवन की नियत उम्र है, सबने ही पाया।
फूलों की सुंदरता जीवन सबक है सिखाए,
काँटों के बीच खिलते रहना हम सीख जाएं,
मुस्कान माथे की कभी कम न करना हार कर,
दुःखों के बीच मुस्काते रहें, फूल ये समझाएं।
फूल की सुरभि हमको जीवन का गुण बताए,
कर्म हो ऐसे कि यश चारों ओर फैल जाए,
फूलों से निकलती सुरभि समझाए जीवन सार,
मुरझाकर खुद वातावरण सुरभित कर जाए।
प्रकृति की गोद में समझ पाएं हम जीवन सार,
यही जीवन के हर उतार-चढ़ाव का है आधार,
पतझड़ में जो पत्ते गिर सूना करें पेड़ों को,
बसंत में खिलकर मन को राहत दें वह बेशुमार।
फल से झुकी डालियाँ हमको हैं बतलाती,
गुण अगर हो आप में, तो वह विनम्रता है लाती,
अहम अगर स्वभाव में देता है कहीं दिखाई,
मिटा देती है इंसान की वह सारी ही अच्छाई।
कुछ इस तरह से पौधों और पत्तों ने सिखाया,
जीवन का असली रूप फिर मुझे समझाया,
प्रकृति है हमारी सच्ची सलाहकार और सहेली,
इसकी हिफाज़त ही जीवन को सुखी कर पाई।
Image Courtesy: By Tường Chopper via pexels
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– रूचिका राय

लेखिका परिचय:
रूचिका, हिंदी साहित्य की एक समर्पित साधिका, अपने भावों और संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में विश्वास रखती हैं। उनका जन्म 29 अक्टूबर 1982 को श्री राजकिशोर राय और श्रीमती विनीता सिन्हा के परिवार में हुआ। हिंदी में स्नातकोत्तर एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने शिक्षण को अपना पेशा बनाया और वर्तमान में राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, तेनुआ, गुठनी, सिवान, बिहार में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं।
साहित्य के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी एकल काव्य संग्रह “स्वपीड़ा से स्वप्रेम तक” और “तितिक्षा (भावों का इंद्रधनुष)” पाठकों द्वारा सराही गई हैं। उन्होंने “अभिनव अभिव्यक्ति (ए बांड ऑफ नवोदयन्स), इबादत की तामीर, अभिनव हस्ताक्षर, दुर्गा भावांजलि, शब्ददीप (इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल)” और “काव्यमणिका” जैसे साझा संकलनों में भी योगदान दिया है। इसके साथ ही, “अभिव्यक्ति (बांड ऑफ नवोदयन्स)” की उप-संपादक के रूप में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है।
कई साहित्यिक मंचों से पुरस्कृत रूचिका अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की कड़वी-मीठी सच्चाइयों और कोमल कल्पनाओं को साकार करती हैं। वे मानती हैं कि अनुभूत संवेदनाओं का कोई मोल नहीं होता और भावनाएँ ही जीवन पथ पर आगे बढ़ने का संबल देती हैं।