“कोरा कागज़” एक ऐसी प्रेरणा है, जहाँ लेखकों ने अपने विचारों को शब्दों में बदलकर कला का रूप दिया है। ये उद्धरण लेखक की गहरी सोच और भावनाओं का प्रतीक हैं, जो एक खाली कागज पर जीवन का रूप लेते हैं। हर उद्धरण यहाँ एक नई शुरुआत की तरह है, और हर विचार एक अनोखी रचना बनकर सामने आता है। इन काव्यात्मक शब्दों के माध्यम से लेखक अपनी कल्पनाओं को रंगते हैं और आपको एक नई दृष्टि से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। आइए, इन उद्धरणों के साथ इस कोरे कागज पर अनगिनत विचारों और भावनाओं का संसार देखें।
निस दिन करूँ मैं नव-सृजन,
कभी न डगमगाए मेरी कलम,
लेखनी में नया इतिहास रचूँ मैं,
हर विधा की बनूँ पारखी,
माँ शारदे की कृपा रहे सदा सर पर।
– प्रेम बजाज
लिखूँ क्या मैं इस कोरे काग़ज़ पे,
यहाँ जब बेआस ही खाली पड़ा है।
कैसे लिखूँ मैं जज़्बातों को,
जब सारा मँझधार यहाँ घायल पड़ा है।
– युवी
ये कोरा कागज़
किस्मत को कहानी में
ख्वाबों को हकीकत में
अश्क को आरजू़ में
सहारा को समंदर में
लफ़्ज़ों को लिबासों में
इश्क को इबादत में
बदलना चाहता है…
– संध्या रानी दाश
ज़िंदगी की आज नई शुरुआत करती हूँ,
पड़ गई हैं जो दरारें, उनमे नए जज़्बात भरती हूँ।
भुला कर गुज़रे दर्द सभी,
कोरे पन्ने पर आज एक नई उम्मीद लिखती हूँ।
– निशा टंडन
कोरे कागज पर चलती रहे सबकी कलम,
उत्साह की क्यारी में पल-पल भीग जाए हम।
बिखरे हुए भावों का नव सृजन होता रहे हरदम,
अनकहे अल्फ़ाज़ को भी ऐसे सहज समेट ले हम।
– मनीषा मारू
भूलकर बीते वर्ष के सारे गिले-शिकवे,
भर दें कोरे कागज़ पर स्नेह के कुछ रंग नए…
प्रेम, विश्वास, त्याग व समर्पण की नई परिभाषा गढ़,
नवीन सपनों संग परस्पर मिल जाएं एक-दूसरे के गले।
– अजित कर्ण
मेरे बिखरे हुए लब्ज़ों को,
कलम ने कुछ ऐसा दिया आकार,
मेरे अनकहे जज़्बात कोरे काग़ज़ पर स्याही के रंग से कुछ यूं हुए सराबोर,
खुली आंखों के सपनों को जब,
किया मैंने अख्तियार,
तब बन गईं मेरी कविता,
एक भावपूर्ण अनुपम शृंगार।
– सुधा रानी पति
आज साल की नई शुरुआत है,
क्योंकि आज नया साल है।
लिखूंगी नए सपने और जज़्बात अपने,
क्योंकि आज फिर से मिली कोरे कागज से भरी नई किताब है।
– मेघा सोनी
कोरे कागज़ पर, कलम की स्याही से मैं रंग रही सपने,
जीवन को सार्थक करने के लिए बुन रही ताने-बाने।
भूमिका भी बाँध ली, लीक से हटकर कुछ खास करने।
– उमा नटराजन
कोरा कागज़ में छुपी है अनसुनी कहानी,
संसार में किसी ने भी न जानी।
लिख सकते हो तो लिखो, कागज़-कलम है,
सोच राह नई, रहे हर एक के ज़ुबानी।
– एम डी यस रामालक्ष्मी
कोरे कागज़ के पन्नों पर जो,
जज़्बातों के मैं रंग बिखेरूं।
ये रंग कभी न धूमिल होंगे,
उड़ जाएँ चाहे प्राण पखेरू |
– रुचि असीजा
कोरा कागज़ में छुपी है अनसुनी कहानी
संसार में किसी ने भी न जानी
लिख सकते हो तो लिखो, कागज़ कलम है
सोच राह नई , रहे हरएक के जुबानी |
– एम डी यस रामालक्ष्मी
जब से जज़्बातों को लिखना शुरू किया,
कोरे कागज़ सी ज़िंदगी रंगीन हो गई।
मन में उमंगें हिलोरे लेने लगीं,
ज़िंदगी फूल सी खुशबूदार हो गई।
– कांता कांकड़िया
कोरे काग़ज़ की भी अपनी तक़दीर है,
किसी के हिस्से शिकायतें,
सिमटी किसी में पीर है।
आग़ाज़ से अंजाम तक का गवाह कोई,
कोरेपन में छिपी कहीं हसरतों की अनकही तदबीर है।
– पारुल कंचन
सफर में कल रहें न रहें हम,
चंद अल्फ़ाज़ छोड़ जाएंगे।
ज़िंदगी के कोरे काग़ज़ पर,
रंग अपने अंदाज़ के छोड़ जाएंगे।
जब कभी दिल करे,
पन्ने पलटकर पढ़ लेना तुम हमें,
दिल की खुली किताब,
तुम्हारे हवाले कर जाएंगे।
– अम्बिका मल्लिक
लफ़्ज़ जो बिखरते रहे कोरे काग़ज़ पर,
मेरे जज़्बातों को बयाँ करते रहे।
कब से डूबे थे, घुटते थे भीतर-भीतर,
बाहर आ मचल, अब मन की कहने लगे।
– मीनाक्षी जैन
बरसों से बंद पड़ी यादों की अलमारी आज खंगाली मैंने।
कुछ पन्ने मुड़े-तुड़े पड़े थे।
कोरे काग़ज़ सा, हृदय मेरा सब कुछ समेटकर रिक्त हो गया है।
– प्राची अग्रवाल
कुछ हौसलों, कुछ आशाओं,
कुछ प्रेम के खूबसूरत रंगों से,
ज़िंदगी के कोरे पन्नों को मैंने रंग दिया।
कभी इंद्रधनुषी छटाएँ,
कभी उदासी के धूसर साए,
ज़िंदगी के इन पन्नों के संग मिल गया।
– रुचिका राय
कोरे काग़ज़ पर बहे, भावों की रसधार,
वेद-ऋचा सी पावनी, करती मंत्रोच्चार।
कभी छंदमय गीत बन, छूती मन के तार,
ज्योति सूर्य की ज्यों करे, जगमग यह संसार।
– शशि लाहोटी
कलम लिखे मन का कहा, दुनिया देती दंश।
कोरा काग़ज़ लिख रहा जज़्बातों के अंश।
पढ़ा नहीं तुमने कभी, मेरे मन का भाव,
शेष सभी समझे नहीं, मन में छुपा अभाव।
– हिमांशु जैन मीत
आड़ी तिरछी रेखाओं से तेरा नाम,
कोरे काग़ज़ पे लिख दिया मैंने,
तेरी निगाहों ने मन के गहराईयों से,
जाने कैसे पढ़ भी लिया उस को।
– सारिता खु्ल्लर
कोरा सा ये मन,
रंग तेरे एहसास।
और है ही क्या,
इस ज़िंदगी में ख़ास।
– सीमा साओजी वर्मा
कोरे कागज पर
लिखती कुछ, मिटाती कुछ।
दिल की कुछ,धड़कन की कुछ।।
इज़हार करना था कुछ,रंगीन अल्फ़ाज़ कुछ।
पर लिख गई कुछ,जबकि ज़ुबाँ पे था और कुछ।।
– तनुजा