Join our Community!

Subscribe today to explore captivating stories, insightful articles, and creative blogs delivered straight to your inbox. Never miss out on fresh content and be part of a vibrant community of storytellers and readers. Sign up now and dive into the world of stories!


माँ के हाथों से बुना स्वेटर: ममता की गर्माहट और यादों की कहानी

A mother and daughter sitting together while playing with white yarn indoors.

वो पुरानी ऊनी स्वेटर और ममता की कहानियां

आज न जाने क्यों मैं खाली बैठी थी। वैसे तो मैं अक्सर खाली होते ही मोबाइल उठा लेती हूं और कुछ न कुछ लिखती रहती हूं। आदत जो ठहरी, जिस दिन कुछ न लिखूं तो ऐसा लगता है जैसे आज जीवन ही नहीं जिया। लेकिन आज तो मोबाइल को छूने का भी मन नहीं कर रहा था, बस अपने ऊनी स्वेटर को हाथ में लिए उसे निहार रही थी।

बेटी शीना भी कॉलेज से आई और मोबाइल हाथ में न देखकर आश्चर्यचकित रह गई। हंसते हुए बोली, “मम्मा, आज सूरज किधर से निकला है? पहले तो जब मैं घर आती, आपके हाथों में मोबाइल होता था। आज ये सारे स्वेटर निकाल कर क्या कर रही हैं?”

“दरअसल, ठंडी आने वाली है, तो मैं सबके स्वेटर निकाल कर देख रही थी कि किसके लिए क्या लेना है। क्योंकि मैंने कल टीवी पर स्वेटर की सेल देखी, तो कल से सोच रही थी कि चलकर तुम सबके लिए कुछ स्वेटर ले आऊं।”

“तो चलिए न, ले आते हैं। इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है? और हर साल आप ये अपना ऊनी स्वेटर निकालती हैं और फिर से संभाल कर रख देती हैं। छोड़ दीजिए न अब, दे दीजिए किसी को। जब पहनना ही नहीं तो क्यों वो पुराना स्वेटर संभाल कर रखा हुआ है?”

“जानती हो, तुम्हारी नानी कभी भी मुझे मार्केट से स्वेटर नहीं खरीदने देती थीं। हमेशा अपने हाथों का बना ऊनी स्वेटर ही मुझे पहनने को देती थीं। लेकिन मैं लड़-झगड़कर बाजार के स्वेटर ही ले आती। मुझे जो भी नया से नया डिजाइन पसंद आता, मां वैसा ही स्वेटर मेरे लिए अपने हाथों से बनाकर तैयार कर देतीं। मैंने अक्सर देखा कि मां रात में भी जब हम सब सो जाते, तो मोमबत्ती जलाकर उसकी रोशनी में बैठी स्वेटर बुनाई करती थीं।”

“मां कहतीं, जो गर्माहट इन ऊन के हाथ से बने स्वेटरों में है, वो बाज़ारी मशीन के बने स्वेटरों में कहां। और सच ही है, एक तो ऊन के बुने स्वेटर और उस पर मां का प्यार भी तो शामिल होता है उसमें। ये बात बहुत देर में समझी थी।”

“जब तुम पैदा हुईं, तब तुम्हारे लिए भी मां ने ऊनी स्वेटर बनाकर ही भेजे थे। मां हमेशा कहतीं, तू भी बुनना सीख ले, बच्चों को अपने हाथ से ऊनी स्वेटर बुनकर पहनाया कर। उस पर मैं यही कहती कि मार्केट में सब मिलता है।”

“मां कहतीं, ‘मार्केट में सब मिलता है लेकिन मां के हाथ जैसा नहीं।'”

“ये मेरी मां की आखिरी निशानी है। जब मां ने ये स्वेटर बुना, उसके दो महीने बाद ही अचानक से मां को हार्ट अटैक आया और पल में मां हम सबको छोड़कर चली गईं। मां सच कहती थीं, मार्केट में सब मिलता है लेकिन मां के हाथ जैसा नहीं।”

“मैं इस स्वेटर को कभी भी अपने से जुदा नहीं कर सकती। जब इसे पहनती हूं या अपने हाथों में लेती हूं, तो ऐसा लगता है जैसे मां को छू लिया हो मैंने। मां का सानिध्य महसूस करती हूं मैं। बस यही किस्से-कहानियां ही तो रह गई हैं अब।”

बेटी ने मेरे हाथ से स्वेटर लिया और खुद के कंधों पर रख लिया।

“मां, आप सच कहती हैं। इस ऊनी स्वेटर में आपको नानी का प्यार महसूस होता है। मैंने भी जैसे ही इसे कंधों पर रखा, ऐसा लगा जैसे मेरे कंधों पर कोई दो मजबूत हाथ हो। शायद सचमुच इसमें नानी का सानिध्य महसूस हुआ।”

आज मैं नानी बन गई हूं और मेरी बेटी अपनी बेटी को मेरी मां, यानी कि अपनी नानी के ऊनी स्वेटर बुनने के किस्से सुनाती है।

Image Courtesy: https://www.pexels.com/@cottonbro/
कृपया अपनी राय नीचे साझा करें, आपकी सोच हमारे लिए महत्वपूर्ण है।


– प्रेम बजाज

Prem Bajaj Writer Author

लेखक परिचय: प्रेम बजाज

प्रेम बजाज एक गृहणी और लेखक हैं, जिनकी रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं जैसे गृहशोभा, सरिता, मुक्ता, मनोहर कहानियाँ और सरस सलिल में प्रकाशित हो चुकी हैं।

उनकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें दो काव्य संग्रह, एक कहानी संग्रह (भावों का संपुट), एक आलेख संग्रह (क्रिटिसिज़्म), एक हॉरर उपन्यास (शापित कन्या), एक प्रेम उपन्यास (My Silent Love) और एक नर्सरी राइम्स बुक (सुनहरा बचपन) शामिल हैं। प्रेम बजाज का लेखन पाठकों के दिलों को छूने की क्षमता रखता है और जीवन के विविध पहलुओं को गहरे और सशक्त तरीके से प्रस्तुत करता है।

Scroll to Top