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मदर्स डे स्पेशल: माँ के नाम एक ख़त जो कभी लिखा नहीं

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“तेरे बारे में क्या लिखूँ ऐ माँ, मैं खुद तेरी ही लिखावट हूँ।”

प्यारी माँ,
तुम ऊपर ये पढ़कर ज़रूर सोच रही होगी कि मैं कब से इतनी जज़्बाती हो गई!
तुम्हारा सोचना बिल्कुल सही है। मैंने कभी जताया नहीं कि तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो। जब तक तुम्हारे साथ थी, तब तक तुम्हारा मूल्य नहीं समझा। पर अब, उम्र की इस ढलान पर जब समय हाथ से फिसलता जा रहा है, तब तुम्हारे बिना ज़िंदगी की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है।

बचपन की बहुत सारी बातें याद आती हैं —
कैसे मेरा और तुम्हारा रिश्ता हमेशा थोड़ा खट्टा-मीठा रहा। परिवार में सबसे बड़ी होने के नाते मैं सबकी लाडली और थोड़ी जिद्दी भी थी। दादी-बाबा ही मेरे लिए सब कुछ थे। जैसे ही छुट्टियाँ होतीं, मैं लखनऊ से गाँव उनके पास भाग जाती। तुम्हारी डांट तब मुझे चुभती थी, पर आज समझ आती है।

तुम गोरी थीं और मैं उतनी नहीं, तो मन में यह भी बैठ गया था कि शायद मैं तुम्हारी बेटी नहीं हूँ।
तुम्हारी हर डांट मुझे पराई लगती थी।
लेकिन यही तो बचपन था! वक्त के साथ ये भ्रम भी टूटा और माँ का असली रूप समझ में आया।

तुम दिनभर चक्रघिन्नी की तरह काम करती थीं।
मुंह से कुछ कहें न कहें, तुम हर ज़रूरत पर तुरंत सामने खड़ी मिलतीं।
अब सोचती हूँ — कैसे कर लेती थी तुम ये सब, माँ?

आज मेरी शादी को तीस साल हो गए हैं।
फिर भी, तुम्हारा आँगन कभी मुझसे छूटा ही नहीं।
तुम्हारे घर के पास ही रहते हुए, वो बचपन का स्वाद, वो प्यार — सब अब भी वैसा ही है।

जो चीजें मुझे पसंद हैं, मैंने कभी बनानी ही नहीं सीखी।
तुम आज भी खुद बनाकर बुला लेती हो। उपवास हो या त्योहार, फलाहार तुम बनाती हो, मैं खाकर चली आती हूँ।
कभी पैक कर देती हो, तो कभी दरवाज़े तक छोड़ने आती हो।

जब तुम हँसकर कहती हो —
“अब कुछ अपनी पसंद का खुद बनाना सीख लो, कल को मैं नहीं रहूँगी तो कौन खिलाएगा?”
तो मेरा मन भर आता है।
मैं तुनक कर कहती हूँ — “फिर मैं खाना ही छोड़ दूँगी। क्योंकि तुम्हारे हाथों जैसा स्वाद किसी में नहीं।”

तुम सबसे कहती हो कि मैं तुम्हारा और पापा का ख्याल रखती हूँ।
पर सच तो ये है माँ — तुम दोनों ने मिलकर मेरा बचपन अब तक ज़िंदा रखा है।

मैं आज भी वही ज़िद्दी बेटी हूँ, जिसकी हर ज़िद तुम चुपचाप पूरी करती हो।

माँ, मेरी यही दुआ है —
तुम और पापा हमेशा स्वस्थ रहो। क्योंकि जब तक तुम दोनों साथ हो, मेरा बचपन भी मेरे साथ है।

तुम्हारी
ज़िद्दी बेटी,
– प्रतिभा सिंह

“आपकी माँ से जुड़ी कोई याद, कोई एहसास — हमारे साथ ज़रूर बाँटें। आपकी बातें अहम हैं।”
चित्र सौजन्य: https://www.pexels.com/@nahmadofficial/

लेखिका परिचय – प्रतिभा सिंह
लखनऊ निवासी प्रतिभा सिंह विज्ञान विषय की वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षिका हैं। बीएससी, बीएड एवं पब्लिक रिलेशन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक जनसंपर्क क्षेत्र में भी कार्य किया।

मुख्यतः गद्य और पद्य विधाओं में सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी रचनाएं अनेक समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। अब तक चार साझा काव्य संग्रह, दो साझा कहानी संग्रहों में आपकी रचनाएं सम्मिलित हो चुकी हैं। मंथन फाउंडेशन की बाल कहानियों में योगदान तथा ‘बुलंदी’ जैसी विश्व रिकॉर्डधारी संस्था में तीन बार काव्य पाठ का गौरव प्राप्त है।

1500 से अधिक प्रशस्ति पत्र, अनेक साहित्यिक मंचों से सम्मान और ऑनलाइन व ऑफलाइन काव्य पाठ का समृद्ध अनुभव आपके साहित्यिक सफर को सशक्त बनाता है। समसामयिक विषयों व राजनीति में गहरी रुचि रखती हैं।

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