Join our Community!

Subscribe today to explore captivating stories, insightful articles, and creative blogs delivered straight to your inbox. Never miss out on fresh content and be part of a vibrant community of storytellers and readers. Sign up now and dive into the world of stories!


हौसलों की उड़ान

#आत्मविश्वास

कॉलेज के दिन कौन भूल पाया है, वक्त बेवक्त कोई ना कोई बात याद आ जाती है और मन में गुदगुदी सी होने लगती है, चेहरे पर मुस्कुराहट और सीने में मीठा सा दर्द भी। काश वो दिन एक बार हम फिर जी पाते। कितने क़िस्से हैं जो दिल में अपनी छाप छोड़ गए । उन में से एक है जो मेरे आत्मविश्वास को बखूबी दर्शाता है।

मैं बचपन से ही काफ़ी आत्म-विश्वासी रही हूँ, कुछ भी ऐसा नहीं जो मुझे डगमगा सका । मुश्किलें आईं तो इतना यक़ीं था कि मैं उनका डट कर सामना कर सकती हूँ। और हर कदम पर सफल होकर मैंने इस बात को साबित भी किया। 

हम कॉलेज के तीसरे वर्ष में थे। दोस्ती का खुमार था, आख़िरी साल था तो मौज मस्ती भी पूरी रवानी पर थी। कुछ ही वक्त बचा था तो हम दोस्तों के साथ का लुत्फ़ उठा रहे थे। हमें एक प्रोजेक्ट करना था जो काफ़ी पेचीदा था। अब तक ऐसा होता आया था कि छात्र पुराने छात्रों का प्रोजेक्ट लेते, लीपा पोती करके उसे प्रस्तुत कर देते थे। कौन झांकने वाला है अंदर, बस यही विचार मन में डोलते थे। मैं कहाँ पीछे रहने वाली थी। बड़ी शान से अपनी सहेली से प्रोजेक्ट लिया, बड़ी मेहनत से उसको नया रंग-रूप दिया और पेश कर दिया। फिर बेफ़िक्र हो गयी कि बस कॉलेज के आख़िरी वक्त में दोस्तों संग ख़ूब मस्ती करेंगे और सब अपनी नई मंज़िल की तलाश में निकल पड़ेंगे। 

अचानक मेरा बुलावा आया प्रिन्सिपल के ऑफ़िस से। पहले ख़याल यही आया कि अब मैंने क्या कर दिया। मैं काफ़ी बदमाश थी, पर प्रिन्सिपल की चहेती भी। डर का रोब पहन कर , सिमटी सी मैं पहुँच गई ऑफ़िस। मुझसे भोला कोई नहीं था उस वक्त। कोई देखे तो तरस आ जाए। अंदर पहुँची तो सर के तेवर बदले हुए थे, “तुमसे ये उम्मीद नहीं थी।” कहकर ग़ुस्से में मेरा प्रोजेक्ट टेबल पर फेंक दिया। मेरी कंपकंपी छूट गई। इतने ग़ुस्से में मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। मैंने उनसे माफ़ी माँगी। वो थोड़ा नरम पड़े और उन्होंने समझाया,” मुझे तुमसे बहुत उम्मीदें हैं। तुम कॉलेज का नाम रोशन करने के क़ाबिल हो।” बस इतना सुनना था कि मैं जोश में आ गयी।

उन्होंने मुझे एक हफ़्ते का वक्त दिया और कहाँ मुझे किसी की भी मदद चाहिए तो बेझिझक ले लूँ और एक हफ़्ते में नया प्रोजेक्ट पेश कर दूँ। उनका मुझ पर इतना विश्वास देख कर मेरा आत्मविश्वास अंगड़ाई लेने लगा। उसे पूरी तरह जगाने का वक्त आ गया था। मेरे आत्मविश्वास को तोड़ना आसान कहाँ था। मैंने भी ठान ली, सर की चुनौती मैं पूरी कर के रहूँगी। आख़िर वृष राशि की जो हूँ। एक बार ज़िद्द पकड़ ली तो फिर मैं खुद की भी नहीं सुनती । (डायलॉग कुछ सुना सुना सा लगता है। सलमान खान की फ़ैन हूँ, ना चाहते हुए भी निकल जाता है।) मैंने भी कमर कस ली। 

कुछ लोग थे कॉलेज में जिन पर मुझे विश्वास था। उनकी मदद से मैंने दिन दुगनी रात चौगुनी मेहनत करके प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। बहुत मुश्किलें आई पर मैंने अपने आत्मविश्वास को टूटने नहीं दिया। उससे हमारे प्रिन्सिपल का विश्वास भी तो जुड़ा हुआ था। एक हफ़्ते का वक्त ख़त्म होते होते मेरा प्रोजेक्ट भी बन कर तैयार हो गया। मुझे खुद पर फ़क़्र हो रहा था। प्रोजेक्ट लेकर जब मैं प्रिन्सिपल के पास पहुँची तो उनकी आँखों में अलग सी चमक थी। उन्होंने मुझे और मेरी टीम को शाबाशी दी और बात वहीं ख़त्म हो गई। 

जब परिणाम आया तो मेरे प्रोजेक्ट को ५०० में से ४९९ अंक मिले थे। क्लास में सबसे ज़्यादा। उस वक्त सर का सीना गर्व से फूला हुआ था। मैंने जो अपने आत्मविश्वास को एक पल के लिए डगमगाने नहीं दिया था। वही जज़्बा काम आया था। आज वो प्रोजेक्ट होटेल मैनज्मेंट सेंट्रल लाइब्रेरी का हिस्सा है। एक बार ठान लिया तो फिर मंज़िल दूर कहाँ।  

अपने आत्मविश्वास की बदौलत मैं नए आसमान चुनती हूँ

अपने हौसलों से ही तो रोज़ एक नई उड़ान भरती हूँ 

1 thought on “हौसलों की उड़ान”

Comments are closed.

Scroll to Top